Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ 'आत्मकथा के बारेमें ही फिर अक दफे मैंने चर्चा करते हुओ कहा'बापूजी, आपने 'आत्मकथा में बहुत ही कंजूसी की है। कितनी ही अच्छी बातें छोड़ दीं । जहाँ आपने 'आत्मकथा' पूरी की है, असके आगे की बातें आप शायद ही लिखेंगे । अगर छूटी हुभी बातें लिख दें, तो 'आत्मकथा' जैसा ही अक और बडा समान्तर अन्य तैयार हो जाय । बापू कहने लगे-'असा थोड़ा ही है कि सब बातें मैं ही लिखू । जो तुम जानते हो तुम लिखो।' मैंने कहा- 'कहीं कहीं तो जैसा मालूम होता है कि आपने जानबूझकर बातें छोड़ दी हैं। अपने विरुद्ध बातें तो आपने मानो चाक्से लिखी हैं । लेकिन औरोंके बारेमें जैसा नहीं किया। जैसे दक्षिण अफ्रीकामें आपके घर पर रहते हुओ, आपकी अनुपस्थितिमें आपका मित्र अक वेश्या ले आया था, भुसका वर्णन तो ठीक है। लेकिन यह नहीं लिखा कि यह व्यक्ति वही मुसलमान था जिसने हामीस्कूलके दिनोंमें आपको मांस खानेकी ओर प्रवृत्त किया था और जिसके कारण आपने घरमें चोरी की थी।' बापूने कहा- 'तुम्हारी बात ठीक है । यह मैंने जानबूझकर ही नहीं लिखा । मुझे तो 'आत्मकथा' लिखनी थी। असमें अिस बातका जिक्र जरूरी नहीं था । दूसरी बात यह है कि वह आदमी अभी जीवित है । कुछ लोग असका मेरा सम्बन्ध जानते भी हैं। दोनों प्रसंग ओक होनेसे असके प्रति अन लोगोंके मनमें घृणा बढ़ सकती है।' हर मनुष्यके लिओ बापूके मनमें कितना कारुण्य है, यह देखकर मुझे अक पुरानी बातका स्मरण हो आया : बनारस हिन्दू युनिवर्सिटीवाले बापूके भाषणके बाद, अखबारोंमें बापू और श्रीमती बेसंटके बारेमें बड़ी लम्बी-चौडी और तीखी चर्चा चल पड़ी थी। असी सिलसिलेमें बम्बीके अिण्डियन सोशल रिफार्मरमें श्री नटराजन्ने बापूके बारेमें लिखा था Every one's honour is safe in his hands - argo Tent repellant 'भिज्जवको खतरा नहीं है। ९४

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92