Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma
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७३ यरवडा जेलमें हम शामको टहल रहे थे । किसी सिलसिलेमें बापू कहने लगे-'कोी विषय सामने आते ही आजकल तो मुझे अस पर लिखनेमें देर नहीं लगती । लेकिन जिसका मतलब यह नहीं कि जिसके लिओ मैंने साधना नहीं की । दक्षिण अफ्रीकामें अक साथीको कानूनके अिम्तिहानमें बैठना था। असके पास न काफी समय था न शक्ति । मैं असके लिओ डच लॉके नोट्स निकालता और रोज पैदल असके घर जाकर असे कानून सिखाता था। अिधर मेरे मुकदमे भी अिस तरह तैयार करके कोर्टमें ले जाता था कि मानो मुझे आज अिम्तिहानमें बैठना हो ।'
अिसके पहले मैंने श्री मगनलालभाीके मुंहसे सुना था कि दक्षिण अफ्रीकामे अक वक्त अक मुसलमान बटलरने बापूसे आकर कहा कि यदि मुझे अग्रेजी आती होती तो अच्छी तनख्वाह मिल जाती। आजकी तनख्वाहमें मेरा पूरा नहीं पड़ता। बस, बापूने तो असे अग्रेजी सिखानेकी तैयारी कर ली। अिस पर वह कहने लगा कि 'आप तो तैयार हो गये, यह आपकी मेहरबानी है । लेकिन मैं नौकरी करूँ या आपके पास अग्रेजी सीखने आy?' अिसका अिलाज भी बापूने देव निकाला । रोज 'चार मील पैदल जाकर असके घर झुसे अग्रेजी पढ़ाने लगे ।
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