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मुझे ठीक याद नहीं है।) लेकिन स्टेशन पर पहुंचे तो देखा कि मेल चली गयी है। अब क्या किया जाय ? बापूने सोचा यह अच्छा नहीं हुआ । अन्होंने तुरन्त रेलवे स्टेशनसे ही तार भेजकर अक स्पेशल ट्रेन मँगवायी और चले। जिसमें कुछ समय तो लगा ही । अधर जहाँ कान्फरेन्स होनेवाली थी, वहाँ लोग स्टेशन पर बापूको लेने गये थे। अन्होंने देखा बापू डाकगाड़ीमें नहीं है। दासबाबू बड़े मायूस हो गये थे। वह स्वाभाविक भी था।
कान्फरेन्सकी कार्रवामी शुरू हो गयी थी। अितनेमें पंडालके सामने ही रेलवे लाअिन पर स्पेशल ट्रेन आकर खड़ी हो गयी। बापू अतरे । बापूको देखकर दासबाबकी आँखोंमें ऑसू भर आये। विरोध हवा हो गया । और अस दिनका काम कल्पनातीत सफलतासे सम्पन्न हुआ।
यह तो हुी बड़ोंकी बात ।
अक समय हम मद्रासकी ओर खादी दौरेमें धूम रहे थे । शायद कालीकट पहुंचे थे । वहाँसे अत्तरकी ओर नीलेश्वर नामक अक छोटा-सा केन्द्र है । वहाँ मेरा अक विद्यार्थी बड़ी ही प्रतिकूल परिस्थितिमें खादीका कार्य करता था । असे बापूके आगमनकी आशा थी। असने स्वागतकी तैयारी भी की थी। पर कार्यक्रममें कुछ असी बाधा पड़ी कि नीलेश्वरका कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा । बापूसे यह सहा न गया। कहने लगे'बेचारा कितनी श्रद्धासे काम कर रहा है, अक कोनेमें पड़ा है, किसीकी सहानुभूति नहीं । वहाँ तो मुझे जाना ही चाहिये ।' बापूका स्वास्थ्य भी सुन दिनों अच्छा नहीं था । राजाजीने बताया कि किसी भी सूरतसे नीलेश्वर जाना सम्भव नहीं है । बापूने झुत्तेजित होकर कहा - 'सम्भव क्यों नहीं है ? स्पेशल ट्रेनका प्रबन्ध करो । अस लड़केकी श्रद्धाकी मुझे कीमत है ।' राजाजी खर्च करनेके लिअ तैयार थे, किन्तु बापूको काफी कष्ट होनेका डर था । अनके स्वास्थ्यको भी खतरा था । राजाजी बापूको समझानेकी कोशिश करने लगे । महादेवभाजीने भी समझाया । अन्तमें मैंने कहा- "राजाजीकी बात मुझे भी ठीक लगती है । मैं अस