Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 75
________________ अम्र थी। अन्हें अपने लिअ कोभी विभूति (Hero) चाहिये थी। गोखलेजीने असाधारण सहानुभूति बतायी और अनकी कदर की, जिसीसे अन्होंने गोखलेकी राजनीतिमें अपने सब आदर्श देख लिये । कुछ भी हो । गोखले बापके जीवन गुरु नहीं थे। श्रीमद् राजचन्द्र (जो बम्बीके अक शतावधानी जौहरी थे) की धर्मनिष्ठा और आत्मप्राप्तिकी बेचैनी देखकर बापूने अनसे बहुतसे प्रश्न पूछे थे और समाधान भी पाया था। तबसे 'श्रीमद् के शिष्य तो यह कहते नहीं थकते कि राजचन्द्र गांधीजीके गुरु थे। बापने कुछ हद तक जिस बातको स्वीकार भी किया। लेकिन जब यह बात बहुत आगे बढी, तब अन्हें जाहिर करना पड़ा कि मैं राजचन्द्रको मुमुक्षु तो जरूर मानता हूँ, किन्तु साक्षात्कारी पुरुष नहीं। किसी समय बापूने अपने किसी लेखमें लिखा था कि 'मैं गुरुकी खोजमें हूँ। क्योंकि गुरु मिलने पर मनुष्यका अद्धार हो ही जाता है । बस, मितना लिखना था कि अनके पास सैकड़ों चिड़ियाँ आने लगीं। कोजी लिखता था, अमुक जगह अक बड़े महात्मा रहते हैं, वे बड़े योगी हैं, अन्हे सब सिद्धियाँ प्राप्त हैं, आप सुनके पास जाकर अपदेश लीजिये। कोभी किसी सत्पुरुषकी सिफारिश करता था । यदि किसीने खुदकी ही सिफारिश करते हुओ बापूके गुरु बननेकी तैयारी दिखायी हो तो मैं नहीं जानता । लेकिन बापूके अद्धारकी अिच्छासे लोगोंने अन्हें अनेक मार्ग दिखाये । अन्तमें बापूको जाहिर करना पड़ा कि 'जिस गुरुकी खोजमें में हूँ वह स्वयं भगवान ही है । भगवान ही मेरे गुरु बन सकते हैं, जिन्हें पानेके बाद कोभी साधना बाकी भी नहीं रहती । मेरी यह सारी जिन्दगी, सारी प्रवृत्ति अस गुरुकी खोजके लिओ ही है ।' जिस तरह हम आश्रमवासी गांधीजीको बापू कहते हैं, असी तरह शान्तिनिकेतनमें लोग रविवाथको गुरुदेव कहते थे। अब गांधीजीका यह स्वभाव या रिवाज है कि जो व्यक्ति जिस नामसे मशहूर हो जाय, वही नाम वे भी स्वीकार कर लेते हैं। रविबाबका जिक्र वे 'गुरुदेव के नामसे करने

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