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कैसे बैठ सकते हैं ? हम असकी जो अन्तिम सेवा कर सकते हैं, वह न करें तो धर्मच्युत होंगे।'
जैसी बातोंमे वल्लभभाभी बापूसे कभी वादविवाद नहीं करते थे। वे चुपचाप चले गये । फिर बापूने हम सब आश्रमवासियोंको बुलाया । हमारी राय ली । मैंने कहा- 'आप जो करते हैं सो तो ठीक ही है। किन्तु अगर मुझे अपनी राय देनी है, तो मै गौशालामे जाकर बछड़ेको प्रत्यक्ष देख यूँ तभी अपनी राय दे सकता हूँ। मैं गौशालामें गया । वछड़ा वेभान पड़ा था । मैं अपनी राय तय नहीं कर पाया । अिसलिमे वहाँ कुछ ठहरा । बादमें जब देखा कि बछड़ा जोर जोरसे टाँगें झटक रहा है, तो मैं बाके पास गया और कह दिया - मैं आपके साथ पूर्णतया सहमत हूँ।' वापूने किसीको चिट्ठी लिखकर गोली चलाने वाले आदमियोंको बुलवाया। अन्होंने कहा - 'गोलीसे मारनेकी जरूरत नहीं। डॉक्टर लोगोंके पास असा अिन्जेक्शन रहता है जो लगाते ही प्राणी शान्त हो जाता है।' अस पर ओक पारसी डॉक्टर बुलवाया गया। असने अस पीड़ित बछड़ेको 'मरण' दे दिया।
जिस पर तो देशभरमें खुब हो-हल्ला मचा था । बापूको की लेख लिखने पड़े थे। सारा हिन्दू समाज जड-मूलसे हिल गया था । बाकी अनन्य धर्मनिष्ठा और गौभक्तिके कारण ही वे मिस आन्दोलनसे बच सके।
पंजाबके अत्याचार, खिलाफतका मामला और स्वराज्य प्राप्ति अिन तीन बातोंको लेकर बापूने अक देश-व्यापी आन्दोलन शुरू किया । भारतके अितिहासमे शायद यह अपूर्व आन्दोलन था, जिसमे हिन्दू और मुसलमान अक हुमे थे । यह अद्भुत दृश्य देखकर अंग्रेज भी घबरा गये । सरकारको लगने लगा कि गांधीजीके साथ कुछ न कुछ समझोता करना ही चाहिये । वाअिसरायने बापूको मिलनेके लिओ बुलवाया।