Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 76
________________ लगे । तिलकजीको ही लीजिये • पहले बापू अन्हें तिलक महाराज कहते थे। बादमें अन्होंने देखा कि महाराष्ट्रमें लोग अन्हें लोकमान्य कहते हैं, तो अन्होंने भी लोकमान्य कहना शुरू कर दिया। यही बात है मि० जिन्नाके चारेमें भी । मि० जिन्नाके अनुयायी अन्हें कायदे आजम कहते हैं, अिसलिओ बापू भी झुनका जिक्र असी नामसे करते हैं। श्री वल्लभमानी पटेलको गुजरातके कार्यकर्ता श्री मणिलाल कोठारीने सरदार कहना शुरू किया और लोग भी अन्हें सरदार कहने लगे । बापूने यह बात सुनी तो अन्होंने भी वही नाम चलाया । अिन बड़े लोगोंकी बात तो छोड़ दीजिये । मै अपने परिवारमें, विद्यार्थियोंमें और मित्र मण्डलीमें काकाके नामसे मशहूर हूँ । यहाँ तक कि जब मेरा पूरा नाम दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर कहीं लिखा जाता है, तो लोग मुझे पूछते हैं कि क्या ये दत्तात्रेय बालकृष्ण तुम्हारे कोसी रिश्तेदार हैं? बस, अिसी परसे बापू भी मुझे काका ही कहते हैं। अमकी चिड़ियोंमें भी 'चिरजीव काका से प्रारम्भ करते हैं और समाप्त करते है 'बापूके आशीर्वाद' से। नामके 'लिले 'काका' शब्द केवल विशेष नाम रहा है, असका कोभी विशेष अर्थ नहीं है । जिसी तरह, रथीबाबू (रविबाबूके लड़के)को अथवा श्री विधुशेखर शास्त्रीजीको लिखते समय रविबाबूका जिक्र गुरुदेव नामसे ही करते है, क्योंकि वही नाम अन लोगोंको प्रिय है। ज्यादा नहीं जाननेवाले लोगोंने अिससे अनुमान लगाया कि गांधीजी रविबाबुको अपना गुरुदेव मानते हैं! अिसी सिलसिलेमे अक छोटा-सा प्रसंग यहाँ लिख देता हूँ। मैं शान्तिनिकेतन गया, तो सबसे पहले गुरुदेवसे मिला । अनसे कहा कि मैंने आपके गीतांजलि आदि अथ पढे हैं, अब मैं आपके कुछ आध्यात्मिक अनुभव जानना चाहता हूँ। मै विशेष प्रश्न पूछू असके पहले वे कहने लगे-'लोग मुझे गुरुदेव तो कहते हैं, लेकिन मैं गुरुमें विश्वास नहीं करता। मैं नहीं मानता कि कोभी किसीका गुरु बन सकता है, कोसी किसीको मार्ग बता सकता है । अध्यात्म मेक असा क्षेत्र है कि जिसमें हरओकको अपने लक्ष्यकी ओर जानेका रास्ता भी अपने आप तैयार करना पड़ता

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