Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 69
________________ क्यों असम क्या हर्ज है ?' वे वोले। मैंने कहा-'आप सरीखोंकी सेवा लेनेकी हममें योग्यता तो हो ।' जिस पर बापूने जो जवाब दिया, असके लिये मैं तैयार नहीं था । मेरा वाक्य 'we must deserve it' सुनते ही बिलकुल स्वाभाविकतासे अन्होंने कहा 'which is a fact.' में सुनकी ओर देखता ही रहा । फिर हँसते हँसते अन्होंने कहा -'तुम लोग वहाँ काम पर गये थे और यहा नाश्ता करके फिर और काम पर ही जाओगे। मेरे पास खाली समय था । भिसलिओ तुम्हारा समय मैंने बचाया । अक घण्टेका काम करके जैसा नास्ता पानेकी योग्यता तो तुमने हासिल कर ही ली है न?' जब मैंने कहा था we must deserve it, तो मेरा मतलब यह था कि जितने बड़े नेता और सत्पुष्यकी सेवा लेनेकी योग्यता तो हममें हो। लेकिन मेरी यह भावना अनके दिमाग तक पहुँची ही नहीं । अनके मनमें तो सब लोग अक सरीखे । मैंने सेवा की, अिसलिओ सुनको सेवा लेनेका हकदार बन गया । सन् १९१४ की ही बात है। महायुद्ध छिड़ गया था । और गांधीजी हिन्दुस्तान लोटे नहीं थे। शान्तिनिकेतनमें जब मैं था, तो वहाँके आम रसोजी घरमे गेहूँकी रोटी नहीं वनती थी। सब लोग भात ही खाते थे। वहाँ दो तीन बगाली लड़के थे, जो अजमेरकी तरफ रहे थे। सुनके लिखे योदी रोटियाँ बनती थीं। पहले दिन जब मैंने रोटी मॉगी, तो सबकी रोटियाँ मैं अकेला ही खा गया। रोटी सी बनी थी कि बिलकुल चमड़ा हो । असका नाम मैंने मोरक्को लेदर (Moracco Leather ) रखा था। ___ अन दिनों मैं स्वभावसे ही बड़ा प्रचारक था । सबके आहारमे मात कम और रोटी ज्यादा हो, यह मेरा आग्रह था । मेरे प्रचारके फलस्वरूप पाँच अध्यापक और ग्यारह विद्यार्थी अलग रसोजी करने लिये तैयार हो गये। मैंने अस दलका नाम रखा था Self-helpers' Food Reform League (स्वावलम्बियोंका भोजन सुधारक

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