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का ज्येष्ठ सुदी ६ साढ़े आठ बजे महलों गये । मट्टजी रामशंकरजा को कहलाया के आशीर्वाद देवा तात्रे उपस्थित होने के लिये अर्ज कर जवाब देवावे; जिस पर भट्टजी ने कहलाया के हाल में कुर्सी में बिराजे है सो गादी पर विराजची वेगा जब आशीर्वाद वेगा । फिर दुबारा अर्ज कराई तो आज्ञा मिली के ज्येष्ठ शुक्ला ६ सोमवार के दिन सुबह ६ बजे आवें । सो भट्टजी ने कहलाया कि आज नौ बजे महला श्री जावें और पाडेजी की ओवरी बैठ जावे । आज्ञा मुश्राफिक ८ ॥ बजे रवाना होकर महला गया और पांडेजी की ओवरी आसन बिछा कर बिठाये। सवा नौ बजे पासवानजी का मन्दिर का महन्तजी आया फिर १ । बजे लाडुवास का आयसजी आया। बाद में भट्टजी तीनो को ही श्री जी मे ले गये । स्वरूप- चौपाड़ में श्री जी को विराजवो हो उठे गया । श्री जी की गादी सामने, दो हाथ की दूरा से सजी रो प्रासन, इसके दाहिनी तरफ भट्टारकजी का श्रासन और पास में पासवानजी का मन्दिर का महन्तजी विना आसन बैठा । सिर्फ जाजम पर पाच हाथ की दूरी पर | बाद ५ मिनिट के मौख करी। श्री जी ने जाता यावतां ऊठ ताजीम दी ।
श्राजीविका पर बन्दोवस्त था वो बरखास्त करवा तावे जरिए हुकम न० २०२६४ स० १६८७ भाद्रपद शुक्ला १५ ता० ७-८-१६३० ई० गिरवा, कपासन, चित्तौड व देवस्थान में निखा गया ।
छोटी पोमाल का ढेरासर में प्रतिमाजी थे उनको बडी पोसाल पवराने और लवाजमा के लिए हुक्म नं० ७८४३१ वै० कृ० १४. मं० १६६२ हुआ । प्रतिमा पूजन विधि की है इसलिए हाथी के बजाय मियानो करा दियो जावे, बाकी फराशखाना से जाजमा २, कनात १, छायाबिरादडी, वान १ और कोतल में चालवा तावे घोड़ा १, हाथी,