Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 51
________________ ( ८५ ) मर्यादा है उस मुजित्र में भी बराबर चनूंगा, किसी प्रकार से वेजा नलंगा नहीं, ठिकाने को अावाद रवगा, ठिकाने के वास्ते जो जायदाद है उसको खुर्द बुर्द नहा करूंगा और पोशाल की मान मर्यादा वरावर टुंगा, शिष्य मेरी जाति सिवाय अन्य को नहीं रक्खूगा, और गृहस्थाश्रम के रिश्तेदार यदि मेरे पास श्रावेंगे तो मुसाफिरान के तौर से खपगा, इस इकरार के अलावा चालू नहीं, और किसी तरह से चलना नावित हो जाय तो सरकार से हुक्म होगा तामील करूंगा, यह इकरारनामा मैंने अपनी मुशी सैरियत व अल होशियारी से लिख दिया सो सावित है। नंवत १६८५ का पौष शुका १३ द० भटारक प्रतापराजेन्द्रसूरि मात्र ' पाणेरो अर्जुनलाल की भट्टारकजी प्रतापराजेन्द्रसरिजी के ___ कहने से ८० अर्जुनलाल माय १ रुघनाथसिंह चमेसरा. साख १ गणेशमात सुराणा सान । जोशी नालाल ब. प. की भट्टारकजी के कहने से दी स्वाकृति भट्टारक प्रताप राजेन्द्रसरि गुरु किशोर राजेन्द्रसूरिजी उपरोक्त सही। उक्त पढ कर स्वीकृति दो ह प्रताप राजेन्द्रसूरि । पहले ३) रु० माहवार और पक्का पेटिया रोजाना मिलता था उसके बदले महाराणाजी श्री सज्जनसिंहजी के राज समय रियासत के खर्च का बजट कायम हुआ, जिसमें धर्म सभा तालुके 5) रु० माहवार करावक्षाये और भट्टारक प्रताप राजेन्द्रसूरिजी ने वरावर मिलते रहने वास्ते धर्मसभा में राज श्री महक्मे खास से जरिए हुक्म नं० ४५६३६ पौष शुक्ला १३ हिसाय दफ्तर में रुको लिख्यो गयो जिसकी नकल तामीलन धर्मसभा मे भेजी गई। श्री वढा हजूर महाराणाजी श्री फतहसिंहजी वैकुण्ठ पधारे और हाल श्री जी गादी विराजमान हुवे सो आशीर्वाद देवा वि० सं० १९८६

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