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मुंवेगा सा करज्यो । ना कह कर बाजी में मालूम करवा महलों में गया, और मालूम कीवी । जिस पर हुकम हुओ के डोल. लवाजमो पहले हुओ वे का नुश्राफिक काम करे, सरकारी तरफ मु नहीं किया जावेगा। ई वास्ते नेला प्रतापरायजी सचों को वन्दोवस्त कीयो । डोल वणायो जिस पर रुपहरी ग्राशायरा लगाई और चारों कोनों पर छतरी के चार तुरे और ऊपर एक तुर्रा टन प्रकार पॉच तुरी नाहरी लगाग के अन्दर सफेद . मलमल मंडाइ गई । दोल में गादी मोग खसा गया। जेल पर मोका मौका पर और बापो पर लाल टूल लपेट कोर लोटी गई । भट्टारकजी का शरीर पर चादर पञ्ची , राता पर दुशाला आराया और डोल में पधराया। नोकरवाली गाय ने दी गई । मुंहपत्ति घुटने पर रक्खी । योषा पास में रक्खा । पोशाल में जगभरा का नाम से होकर, सदर कातवाली व बडे बाजार के रास्ते से गंगोत्र व पाक के पास पहुंचे, नामे लवाजमो व ज्योति लालटेन में मार्ग हुई बरावर नार पी, चवर राने गये। साथ मे दो पुलिस के व्यक्ति थे । गोश्व पहुच कर रही जो भट्टारकदेव राजेन्द्रसूरिजो की छतरी के पास
गाई थी उनी प्रवेश कराने के पहले नवा. पूजन की गई, फिर रथी में पवार पारी करने के बाद, अग्नि नस्कार नेणावाल श्रीलालजी जो रतनजी के नशज उनके नजदीक रिश्ता में होने से उनके हाथ से सब हत्य किया गया और प्रतापरायजी पोशाल पर ही रहे।
अन्तिम संस्कार में प्रसिद्ध २ गोमवाल महानुभाव, ब्राह्मण, पडौसी महात्मा बन्धु वगैरह अची तादाद में थे । भट्टारकजी को दाह संस्कार कराने ले गये। पोले के ठिकाने पर वन्दोवस्त करने के लिए भट्टजी रामभकरजी व मामना हिसाव दफ्तर दौलतमिहजी पंचोली व चौकी का सार म्वरूपसिंहजी शक्तावत, पुलिस का नारायणलालजी आमेटा सहित आये,
और जरूरी सामान बाहर निकलवा कर मकानों पर चिट लगाये, डोल खर्च वगैरह में १२६ रुपये का खर्च ठिकाने का हुआ; डोल के साथ मे