Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 63
________________ ( १४८ ) आदि बडे २ अंग्रेजों से खुद ले जाकर दस्तापोशी याने ( हाथ मिलाया ) और उनको सम्बोधन किया कि यह हमारे गुरु हैं । परिचय कराया दूसरी मरतबा महाराजा साहब के बाई साहिबा की शादी में शरीक हुवे । सन् १९११ में बादशाह पंचम जॉर्ज सम्राट के ताजपोशी के दरबार में भी हाजिर हुवे । झाबुए राजा दिल्ली कॉन्फ्रेंस में गये वहाँ भी शरीक हुए। रईस सीतोमोह के कंवर रघुवीरसिंहजी के नाम कर्ण के मौके पर मोजा नागड़ाखेड़ा में जागीर बक्षी । पोलीटेकल एजेंट सरदारपुर ने झाबुआ गोदनशीनी के मामले में सार्टिफिकेट दिया । माबुआ रईस ने १००) सालाना कर बने इनके पुत्र निर्भयसिंहजी को रियासत सेलाना झाबुआ अलीराजपुर व मालवा प्रान्त के तमाम ठिकानों में अपने कुलगुरु मान कर फिर नई सनदें कर दी । A रतलाम दरबार का पट्टा: सिधश्री " महाराजाधिराज श्री श्री रणजीतसिंहजी श्रांगु कुलगुरु लालजी धनराज भेरू ने शुभ नजर फरमाय श्री बड़ा हजूर भैरवसिंहजी रतलाम में पास रांख्या और पटो, ३६०) को कर बच्यो सो उपटो देत माहे जमीन बीघा १५१ मोजे इटावा माताजी विजासण में चोतरा सूं उगमणी तरफ की मपा दी गई सो हमेशा पुस्त दर - पुश्त पाल्या जासी पुण्यारत कर दीवी और जो कुलगुरु को हक दस्तूर जाया परण्या व नामा माडने का होवेगा वो मिल्या जावेगा थें अठे हाजर रिया जाज्यो । श्लोक मामूला । सं० १६२१ भाद्वा विद ३ हस्ताक्षर उपाध्याय मथुरालाल ।

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