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इण जस जिनिडुप्य विभ्योनक सूत्र २५६ पाद ३ सिद्धान्त - कौमुदी कर्ता ने इस सुत्र की व्याख्या में 'जिनोऽर्हन कहा है ।
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मेदनी कोष मे भी "जिन" शब्द का अर्थ "अर्हत" जैन धर्म के आदि प्रचारक हैं ।
वृत्तिकारगण भी "जिन" के अर्थ में 'अन्' कहते हैं । यथा उणादि सुत्र सिद्धान्त कौमुदी ।
आधुनिक काल के योरोपियन भी जैन धर्म की प्राचीनता समर्थन करते हैं। जैसा कि जर्मन, के डा. जेकोबी ४० वर्ष से जैन साहित्य का अभ्यास कर रहे हैं और कितने ही जैन स्कॉलर तैयार किये हैं। बल्कि सन् १९१५६० मुताविक वीर संवत् २४४२ में जैन साहित्य सम्मेलन जोधपुर में लम्बा भाषण दिया था ।
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इसी तरह बंगवासी एम. एम. डाकूर शतशचन्द्र विद्याभूषण एम. ए. पी. एच. डी. प्रेसिडेण्ट जैन लिटरेरी कानफ्रेन्स जोधपुर में अपनी वक्तृतादि जिसमे जैन धर्म के महत्व का वर्णन किया
इसके सिवाय सन् १९०४ ई० मे बड़ोदा नगर में कान्फस के मौके पर श्रीमान् बड़ौदा नरेश ने जैन धर्म की प्राचीनता प्रसंशा का व्याख्यान दिया
फिर इसी सन् की ता० ३० नवम्बर के दिन भारत गौरव के तिलक पुरुष शिरोमणि इतिहासज्ञ माननीय पण्डित बाल