Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 46
________________ (८०) . हाल चालु है नब जगच्छ रा भटारक गेर हाजीर होवे ली गच्छ में न गीच लागती रो लडकों होवे जीने बैठावे नगीच नहीं मीले तो दरा गच्छ माहे तलास करे सायद गच्छ माह भी योग नहीं बणे तो हमारी जात ८४ गच्छ हे जी माहे सु तलासी करके रखे, कदाचीत बादी जात माहे पीयोग नहीं बणे को ब्राह्मण का बड़का ने नेर कायम भटारक नी होवे जारा हाथ सुवीरी दीक्षा का विधान करे पछे श्रीजी माहे सुदुमालो आवे एक पछेवडी सहेर का समस्त पंचा की तरफ सु श्रावे पछेषड़ी धुमधाम सु गाजीत्र वाजीत्र सु थोबकी बाड़ी ले जावे उठे गुरु मन्त्र सुणावे पठासु पालकी माहे बैठाय पाछा पोसान माहे नाय गादी ऊपर स्थापन करे, जीदिन सुवे मटारक जी कह लाचे, इम मुजीब दो सुरत से हमारे चेला गादी का हकदार होता है फकत् भटारक वरदमानजी ग्राम चकारड़े पर लोकवास हुधा वारे हाथ सु चेलो नहीं मुडो जी पर वि. सं १९२२ में महाराणाजी श्रीशम्भुसिंगजी के समय में दरियाफत हुई जद या हकीकत मालूम कराई लेखक का पिता क्षेमराजजी वीयाददाश्त सुन कक की मालुम वेवा पर छोटी पोसाल कवल गच्छ की हेवी पर मटारक देव राजेन्द्र सूरिजी जो नेणावाल गच्छी महात्मा मयोचन्द जी का पुत्र थे वे गादी पर कायम हावारे चेला विस्तूरचन्दजी नाम का था वाने इगादी पर मुकरिर कर किशोर राजेन्द्र सूरिजी नाम दिक्षा को राख्यो इरो दाख लोषट दर्शनों का दारोगा भट रामशंकरजी का दफसर में है।

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