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आदि धम है और जैनियों में आदिश्वर को बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध पुरुष जैनियो के २४ तीर्थकरो में सबसे पहले हुए हैं। ऐसा कहा है।
भारत में पहले ४०००००००. जैनी थे। उस मत में से निकल कर बहुत लोग दूसरे धर्मों में चले गये जिमसे संख्या कम हो गई।
वावू कृष्ण नाथ बनर्जी "जैनी मा मे लिखते हैं। भगवान महावीर के पश्चात विक्रम १३ वी शताब्दियो तक जैनधर्म अच्छी उन्नति पर था। मौर्यवंश, कुल चुरिवंश, बत्रमी वंश, कदम्ब चश, राष्ट्रकूट वंश, परमार वंश, चौल्पूक्य वंश के राजा
ओ ने धर्म की बहुत उन्नति की जिसके शिला लेख और ताम्र पत्र आज इतिहास मे उच्च स्थान प्राप्त कर चुके है। . श्रीयुत महामहोपाध्याय सत्य सम्प्रदाचार्य सर्वान्तर पं० खामी राम मिश्र शास्त्री भूत प्रोफेसर संस्कृत कॉलेज बनारस अपने व्याख्यान मे, जो पोप शुक्ला १ विक्रम संवत् १९६१ मे काशी मे हुआ कहते हैं(१) वैदिक मत और जैन मत सृष्टि के प्रारम्भ से बराबर
अविछिन्नं चले आये हैं। और इन दोनो मतों के सिद्धान्त विशेष सम्बन्ध रखते हैं। जैसा कि पहले कह चुका हूँ। अर्थात् सत्यकार्य वाद, सत कारण वाद, परलोकास्तिव,
आत्मा का निरविकारत्व, मोक्ष का होना और उसका नित्यत्व, जन्मान्तर के पुण्य पाप से जन्मान्तर मे फल