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(६६) जो विक्रम सम्वत ११६६ से १२३० तक राज्य किया था । इसलिये धनेश्वर सूरि का कथन विश्वास योग्य नहीं" सो यह विचार उक्त पण्डितजी का भ्रम सूचक है क्योंकि शन्त्रजय महा. ल्य में साफ वर्णन है कि श्रीभगवान महावीर इन्द्र प्रती भविष्य वाणी फरमाइ के “ विक्रमा दीत्य पीछे ४७७ वर्षे धर्म की वृद्धि करने वाला शिला दीत्य राजा थशेत्यार केडे भा जैन शाशन की भन्दर (पाटणनी गादी ) कुमारपाल, वाइड, वस्तुपाल अने शमरा शाह वगेरह प्रभाबिक पुरुष थशे" इसी भविष्य वाणी का इम ग्रन्थ में ठक्त झटारक ने वर्णन दर्ज किया है न के कुमारपाल के राज समय में बनाया देखो शन्त्रुजय महातम पेन ११३ पाश्वनाथ चरित्र । इस बाणी को जैन समाज कदापि मिथ्यान मान सकेगा आज भी भविष्य वाणी जोतषियों पर ननता विश्वाम करती है फिर भगवान के वल्पज्ञ नी की वाणि कैसे मिथ्या हो सके । पण्डितजी महाराज आपने जो राजस्थान इतिहास बडे परिश्रम च सोध, खोज, के साथ बनाया इसके लिए हम आपको अनेक धन्यवाद देते है । लेकिन फिर भी संसार में सर्व प्रकार के लोग बसते है उन सवी की मति समान नही होती जैसे कि विश्वेश्वर नाथजी रेहु ने तुलसी सम्बत ३०१ वेसाख मान की माधुरी में आप पर आक्षेप की या वो दरज है उससे तो श्रीमान परिचित होवे ही गे । भागे मैं छठे शिला दीत्य का संवत ४७४ में होने के प्रमाण आधुनिक इतिहासों से होता है वो देता हूं । यह सं. ४७४ वलभी सं. जो विक्रम सम्वत ७१८ में होने का अनुमान होता है। क्यों कि भाखरी शिला दीत्य राजा का दान पत्र सबसे पिछले ४६