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(.६४१) होने की साक्षी में कल्प सूत्र लाफ साफ साक्षी देता है कि भगवान महावीर माता त्रीपला देवी के गर्भ में आये और माता को स्वप्न हुए उन स्वप्नों को सुनकर राजा सिद्धार्थ ने उन - स्वप्नों के फल पुछने के लिये पाण्डितो को बुलवाने की आज्ञा दी तो प्रचारक गण क्षत्री कुण्ड के मध्य भाग में होकर जहाँ स्वप्न पाठक जोतिषियों के घर थे वहाँ गये वहाँ से जोतिषी लोग पाए तो राजा ने नमस्कार सतकार सन्मान पूजन कर यथोषित आसन पर बैठाये याने पूर्व में भद्रासन लगे थे उन पर बैठाये यहाँ यह शंका कोई करे कि वे जोतिषि अन्य मताव लम्बि होगे तो इसके प्रमाण में यह दलिल काफ़ी होगा के उन जोतिषियों ने राजा को आशीर्वाद श्री पार्श्वनाथ की स्तुति पढ ' कर दिया फिर गना के प्रश्न के उत्तर में जोतिपियों ने स्वप्न फल.कहा | अब फिर दूसरा प्रमाण इसी कल्प सूत्र के पांचवें व्याख्यान में दरज है वो देता हूँ जो श्रीभगवान महावीर के, जन्म के तीसरे दिवस सूर्यचन्द्र दर्शन कगने की विधि होती है " गृहस्थ गुरु ( संस्कार कराने वाला विद्वान गृहन्धा गुरु जैन ब्राह्मण अहंन देव की प्रतिमा के सामने स्फटिकर-नवाचा. दो की चन्द्रमा की मूर्ति स्थापन कराके प्रतीष्ठा पूजन करके माता और बालक को स्नान कराके अच्छे वन पहिराकर चन्द्रोदय के समय रात्रि में चन्द्र मन्मुख माता पुत्र को बैठा कर ऐसा मन्त्र पढ़े " ॐचन्द्रोसि, निशाकरो, । नक्षत्र पति रसि, ओषधि गोंसि भस्य कुलस्प ऋधि वृद्धि कुरु २ ;ऐसा बोलकर गृहस्थ गुरु माता व पुत्र को चन्द्र के दर्शन करावे और नमस्कार करावे फिर माता उस बालक को गुरु के पर्गा लगाके