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रचे मुकुट धारण किया । इम इतिहास के पढ़ने पर कितनेक यह शंका करेंगे कि हा वेशक महाणो ( गृहस्थ गुरुपों) की उत्पत्ति शाबो से पाई जाती है लेकिन भगवान सुविधिनाथक चन्द्र प्रभु के कितनेक काल पश्चात् जैन धर्म के चातुर्सङ्ग का विच्छेद होगया था तो वे गृहस्थ गुरु भी विच्छेद चले गये फिर उत्पति कब से और क्यो हुई " लेकिन यह शंका निर्मूल है क्या माने कि अव्वल तो उस समय चातुसंग का विच्छेद जाना पाया नहीं जाता हॉ अलबते अकाल से साधुसाध्वीयों का विच्छेद जाना अवश्य वर्णन है यह वाक्य तो ऐमा प्रतीत होता है कि जैसे पुरुष रामजी के इतिहास में प्रसिद्ध है कि इन्होंने २१ बार पृथ्वी को नीक्षत्री कर दी थी यह एक तरह का पाण्डितों का गूढ रहस्य है इसके प्रमाण में यह ही काफि होगा कि रामायन में धनुष्य यज्ञमें धनुष उठा ने के लिये दश हजार राजाओं का एक ही बार बल करने के बारे में चौपाई दरज है "भूप सहस दस एक ही बाग, लगे उठावन टरे न टारा" इसके साथ ही श्रीरामचन्द्र से संवाद होकर पुरुष गम जी पराजय होकर आशीर्वाद देकर वनमें मिधारे तो फिर पृथ्वी निक्षत्री होती तो यह राजा व रामचन्द्र कौन थे । ऐसा ही इस भयंकर समय में साधु साध्वीयों का विच्छेद हूँ वा उस समय में धर्म की रक्षा इन ही गृहस्थ गुरुओं ने की इसका प्रमाण और न देकर सिर्फ कल्पसूत्र में संजतीयों की पूजा का पाठ देखो उससे साफ प्रमाणित होगा | असंजतीयों ने (असंजमी नोन्होंने संनम नही लिया) उन गृहस्थ गुरुओं ने रक्षा की इसके सिशय दूसरा प्रमाणा गृहस्थ गुरु पूजनीय