________________
(६५)
पीछे गुरु प्राशीर्वाद देवे । सर्वोषधि मित्र मरि चिराजिः सर्वापदासहरणे प्रवीणः । करोति वृद्धि पक्रनेपिवंशे युष्माकमिदं: मतं प्रसन्नः ॥१|| चन्द्र दर्शन के बाद सूर्य दर्शन करते है उसकी विधि । दूमरे दिन प्रभात में सूर्योदय के समय सुवर्ण या तांबे की सूर्य मूर्ति बनवाकर पूर्व की तरह स्थापन कर ग्रहस्थ गुरु इस तरह मन्त्र पढ़े । ॐ अर्ह सूर्योंसि, दिन कगेसि, तो पहरो. सि, सहस्त्रकिरणोसि, जगच नरसि, प्रसिद्ध अस्य कुलस्य तुष्टिं पुष्टि प्रमोद कुरु २ एसा मन्त्र उच्चारण कर भाता व पुत्र को सूर्य दर्शन करावे और माता बालक को गुरु के पगा लगावे गुरु आशीर्वाद दे 'सवे सुग सुर वंद्यः कारयिता सर्व कार्याणाम् म्यांखि जगच तुमंगलदस्त सपुत्राय ॥१॥ इस इतिहास से आप की गृहस्थ गुरुओं का पूजनीय यदव उस समय में गृहस्थ गुरु
ओ का होना प्रमाणित होगा । इसके सिवाय कल्प सूत्र टिका बाल व बोध नामी राजेन्द्र सूरिक्रत के पेज २०० में इस जाति की उत्पत्ति का समर्थन इस प्रकार किया है । इवे एक दिवसे भगवान अष्टापद पर्वत उपर समोसरा तेवारे भरत महागजा ये विचार न्यु २ जे बिर्जु तो म्हारा थी कांह थतोन 'थो पण
आसर्वे साधुओं ने "e६ भाइयो ने दीक्षा ली वे) अहार बोहरा उतो लाभ पामुतेवारे एवो जाणी ५०० गाडा सुखडी नामरी लाग्यो अने भगवान ने कह चाला गोस्वामीजी आज ना दवसे पासर्वे साधुउने अहार कराववानु हुकम म्हारे घेर थइ जाय तो गणो जरुढो थाये तेबारे भगवान ने कहों आधा कर्मिक राज्य पिड साधुअोंने लेवु कल्पे नहीं बलि सन्मुख अहार लइ आव्युते माठे साधुओं लीधो नहीं एवु: जोइ भरत राजा