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प्रहण नहीं कर सकते। तो भरत ने विचार किया कि राजभोग नहीं करते है तथापि प्राण के धारण के लिये अहार तो करेंगे? ऐसा विचार कर ५०० गाडी भरवा कर अहार मँगवाया तो उसके लिये भी भगवान ने निषेध किया कि मुनियों के लिये श्राधा कर्मी प्रहार काम का नहीं तद मरत दुःखी हुभा और इन्द्र से पूछा कि अब मे अहार की क्या व्यवस्था कर इन्द्र ने कहा “यह सब अहार सब गुणों में बढ़ चढ़े हुए पुरुषों को दे डालो भरत ने विचार किया कि साधुओं के सिवाय विशेष गुण वाले पुरुष और कौन होगा ? अच्छा अब मुझे मालुम हुआ । देश विरति के समान श्रावक विशेषगुणोत्तर है इसलिये सब उनके अर्पण कर देना चाहिये । भरत राजधानी में आकर सर्व श्रावकों को बुलाकर कहा आप लोग सब सदा भोजन के लिये मेरे घर भाया करो और कृषि आदि कार्य में न लगकर स्वाध्याय में निरत रहते हुए निरन्तर अपूर्व ज्ञान को ग्रहण करने में तत्पर रहो । भोजन करने के बाद मेरे पास भाकर प्रतिदिन यह कहाँ करो 'जितो भगवान वद्धत भी स्तसमान माइन माइन' अर्थात् तुम जीत गये हो भय वृद्धि को प्राप्त होता है इसलिये आत्मागुण को न भारो न माने जब भोजन करने वालों की जीयादा वृद्धि हुई होती देख पाकशाला के अध्यक्ष ने निवेदन किया कि इतने भोजन करने वाले प्रावे है कि समझ में नहीं आता कि वे श्रावक ही है या नहीं उसपर. मरत ने श्रानादि कि तुम भी तो श्रावक ही हो इसलिये परिक्षा कर भोजन दिया कगे तब से भोजन करने वालो से पुछता कि तुम कौन हो वे कहते कि श्रावक, तो पुछता कि श्रावकों के