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सिद्धि विमान से चव्य होकर स्थिति हुआ । और चैत्र कृष्णा ८ के दिवस उत्तराषाढ़ा नक्षत्र मे श्री आदि नाथ भगवान का प्रादुर्भाव इम जगत में हुआ, जो श्री ऋषभदेव के नाम से सम्बोधन होत हैं । यहाँ मै युगलकों की कथा का समर्थन अन्य मतों से भी करता है जैसाकि अहल इस्लाम के धर्म ग्रन्थो में भी दरज है कि सबसे पहले इम जगत में आदम नामी मनुष्य और हव्वा नामक खी पैदा हुए थे । उनके दिन प्रति एक जोड़ा, लड़का व लड़की पेंढा होता था । और वो ही स्त्री पुरुष नाता कर लेते थे । आदम और हव्वा का होना इसाई धमात्र लम्बी भी मानते हैं" ।
श्री ऋषभदेव का जन्मोत्सव करने को धर्म देव लोक से इन्द्र समेत ६४ इन्द्रव ५६ दिग कुमारियां मेरु पर्वत पर आए । 'इनमें रत्न प्रभा पृथ्वी की मोटी तह में निवास करने वाले चमर चन्चानामा नगरी का चमरेन्द्र और बाजी चन्चा नाम नगरी का इन्द्र बलि भी समेत त्रेयस्त्रिश क ( कर्म काडि) देवताओं के आए और जन्मोत्सव मनाया । तदनन्तर इन्द्रादि देवना तो अपने २ स्थान पर चले गए और कुछ त्रेयविशंक देवनाओ को बनिता नामक नगरी में ही रखे गए । इसका यह कारण था कि भगवान का विवाह व राज्याभिषेकादि ऋत्य कगने थे व जगत में यह संस्कारादि चलाने थे । उन देव' ताओं की सन्तति से इस जाति की उत्पति है । उम समय में इस जाति के गुरु सन्तानीया नाम से सम्बोधन करने लगे ! इस इतिहास को पढ़ने से आधुनिक नवा शिक्षित पाश्चात्य विद्या