Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 26
________________ (४४) भोग, व्रतोवासादि व्यवस्था, प्रायश्चित्त व्यवस्था, महाजन पूजन, शब्द प्रभारव्य इत्यादि समान है । ( २ ) जिन जैनो ने सब कुछ माना है उनसे घणा करने वाले कुछ जानते ही नहीं और मिथ्या द्वेष मात्र करते हैं। (३) जैन और बोद्ध में जमीन आसमान का अन्तर है दोनों को एक जानकर उससे द्वेष करना अज्ञानियों का कार्य है । (४) सबसे अधिक अज्ञानी वे हैं जो जैन सम्प्रदाय के सिद्ध लोगों में विघ्न डालकर पाप के भागी होते हैं । " (५) सज्जनों ! ज्ञान, वैराग्य, शान्ति, क्षांति, अदम्भ, अनिर्ष्या, अक्रोध, श्रमात्सर्य, अलोलुप्ता, शम, दम, अहिंसा, समदृष्टिता इत्यादि गुणों में से प्रत्येक गुण ऐसा है कि जिस में वह पाया जावे उसकी बुद्धिमान लोग पूजा करने लगते हैं तब तो जहाँ ये ( जैनो में ) पूर्वोक्त सत्र गुण निरतिशय सीम होकर बिराजमान है उनकी पूजा न करना क्या इन्सानियत का कार्य्य है । (६) पूरा विश्वास है कि अब आप जान गये होंगे कि वैदिक सिद्धान्तियों के साथ जैनों का विरोध का मूल केवल अझो की अज्ञानता है 1 . (६) मैं आपसे कहाँ तक कहूँ बड़े २ नामी आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में जो जैन मत खण्डन किया है जिसे सुन देख कर हँसी आती है ।

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