Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 22
________________ (४०) (२) यह जैन आचार्यों के गुरु पाक दिल, पाक खयाल मुज ‘स्सम पाकी व पाकी जगी थे। हम इनके नाम पर और इनके बे नजीर नफ्सकुशी व रिाजत की मिसाल पर . जिस कदर नाज ( अभिमान) करे बजा है। हिन्दुओ! अपने इन बुजर्गों की इज्जत करना सीखो." तुम इनके गुणों को देखो, उनकी पवित्र सूरतो का दर्शन करोउनके भावो को प्यार की निगाह से देखो 'यह धर्म की कर्म की चमकती, दमकती, झलकती हुई मूर्ति है... • .............. उनका दिल विशाल था व एक बे पाँया कनार समन्दर था। इन्होने मनुष्य क्या सर्व प्राणियो की भलाई के लिए सबका त्याग किया और अपनी जिन्दगी का खून कर दिया। यह अहिंसा की परम ज्योति वाली मूर्तियाँ है । यह दुनियाँ के जबदश्त रिफार्मर है। यह ऊँचे दर्जे के उपदेशक हैं। यह हमारी कौमी तवारिख के कीमती बहुमूल्य रत्न हैं। पार्श्व यह ऐतिहासिक पुरुषहता ते बात तो बधीरीते संभवित लागे छ, केशि खामि के जे महावीर स्वामिना समय माँ पाव ना सम्प्रदाय नो एक नेता होय तेम देखाय छो। जरमन जेकोनी "सब से पहिले इस भारत वर्ष में ऋषभदेव नाम के महर्पि उत्पन्न हुए" वे दयावान भद्र परिणानी पहले तीर्थकर हुए। जिन्होने मिथ्यत्व अवस्था को देख कर, सम्यग-दर्शन, सम्यग-ज्ञान और सम्यग्-चरित्र रूपी मोक्ष शास्त्र का उपदेश किया। इसके पश्चात अजीत नाथ से लेकर महावीर तक तेइस तीर्थंकर अपने २ समय में अज्ञानी जीवों का मोह अन्धकार

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