Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 21
________________ (३६) गंगाधर तिलक सम्पादक केशरी ने अपने व्याख्यान में कहा कि "जैन-धर्म अनादि है। ___ यह विषय निर्विवाद है और जैन धर्म ब्राह्मण धर्म के साथ निकट सम्बन्ध रखता है, शक चलाने की प्रथा (कल्पना) जैन भाइयो ने ही उठाई । गौतम बुद्ध महावीर का शिष्य था, बौद्ध धर्म के पहले जैन धर्म का प्रकाश था। जैन धर्म के ही "अहिंसा परमो धर्म” इस रदार सिद्धान्त ने ब्राह्मण धर्म पर चिरस्मरणीय छाप मारी है। हिंसक यज्ञ छुडाये। जिन यज्ञो में हजारो पशुओ की हिसा होती थी इपके प्रमाण मेघदूत आदि कारों में मिलते हैं। यह श्रेय जैन धर्म के ही हिस्से में है। ब्राह्मण और हिन्दुओ में माँस भक्षण और मदिरा पान बन्द हो गया यह भी जैन-धर्म का ही प्रताप है-पूर्वकाल मे जैनधर्म के कई धर्म-धुरन्धर पण्डित हो गये हैं। इसके सिवाय ज्योतिष शास्त्री भास्कराचार्य के ग्रन्थो से भी इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। और देखिये सु-प्रसिद्ध श्रीयुत महात्मा शिववृत लालजी वर्मन एम. ए. सम्पादक 'साधु' 'सरस्वती-भण्डार', तत्वदर्शी 'मार्तण्ड' लक्ष्मी भण्डार' सन्त-सन्देश' ने साधु नामक सुदू मासिक पत्र जनवरी सन् १९११ ई० के अंक में प्रकाशित किया है । उसके कुछ वाक्य यहाँ उद्धृत करता हूँ(१) 'गये दोनो जहाँ नजर से गुजर, तेरे हुश्न का कोई नश न मिला'

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