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दुर्वासा ऋषि कृत महिम्न स्तोत्र
तत्र दर्शने मुख्य शक्तिरिति चत्वं ब्रह्म कर्मेश्वरी। कर्ताऽईन पुरुषो हरिश्व सविता वुद्धः शिवस्वे गुरु ।।
___ श्री हनुमान नाटकयशैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मोति वेदान्तिनो। बौद्धा बुद्ध इति प्रमाण पटवः कर्तेती नैयायका ।। अईन्नित्यय जैन शासन रताः कर्मेति मी सकाः । सोयं वो विद्धानुवांछित फलं त्रैलोक्यनाथ प्रभु।।
इन धर्म ग्रन्थों के सिवा व्याकरण से भी प्राचीनता सिद्ध होती है।
शकटायनाचार्य चे स्तुति की हैनमः श्रीबर्द्धमानाय (महावीर) प्रबुद्धा शेषवस्तवे । येन शब्दार्थ सम्वन्धा सावर्ण सुनिरुपिताः ॥
आगे देखिये यही शकटायनाचार्य अपने व्याकरण के प्रत्येक पदान्त में "महा श्रमण संघाधिपतेः श्रुत केवलि देशी चार्यस्य शाकटायनस्य" यह शाकटायन आचार्य परम जैनी थे जैसा कि टीक कार यक्ष वर्मन कहते है, "स्वस्ति श्री सकल ज्ञान साम्राज्य पदमाप्तवान् महाश्रमण संधाधिपतिर्यशाकटायन ।” शाकटायन के उणादि सुत्र में "जिन" शब्द व्यवहारित हुआ है।