Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma
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( ३५ )
योग वसिष्ट रामायण - वैराग्य प्रकरण में स्वयं श्रीरामचन्द्र भाज्ञा फर्माते हैं
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" नाहम रामो नमेवान्छामावेषु च तमे मनः । शान्तिमा स्थातुमिच्छामि चात्मनेव जिनो यथा ।। "
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नगरपुराण के भवावतार रहस्य में "अकारादि हकारान्त मुर्द्धा धोरेफ संयुते नाद बिन्दु कलाकान्त चन्द्र मण्डल सन्निभं । एतद्देविपरंतत्वयो विजानातितन्तवः संसार बन्धनं छित्वा सगच्छेत् परमगतिम ||
प्रभास पुराण में - " भवस्य पश्चिमे भागे वामने न तपः कृतम् तेनैव तपसा कष्टः शिवः प्रत्यक्षतांगतः ॥ पद्मासन समासीनः श्याम मुर्तिर्दिगम्बरः । नेमनाथ शिवोथेवं नाम चक्रेऽस्य वामनः ॥ कलिकाले महाघोरे सर्व पाय प्रणाशनम् । दर्शनात स्पर्शनादेव कोटि यज्ञ फल प्रदम।। देखो जैन तीर्थकरों में नेमनाथ २२ वां तीर्थकर है और इनका श्याम वर्ण होना ग्रन्थों में लिखा हैं ।
नागपुराण - दर्शयन् वर्त्म वीराणां सुरा सुर नमस्कृतः ।
नीतित्रयस्य कर्नायो युगादौ प्रथमोजिनः ॥ सर्वज्ञ सर्वदर्शी च सर्व देव नमस्कृतः । छत्रत्रयी मिरापुज्यो मुक्तिमार्ग सौवन्दन ॥ आदित्य प्रमुखा सर्वे बद्धांजलिभिरीशितुः । ध्यायन्ति भावतो नित्यं दधियुग निरंगम् ॥

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