Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 16
________________ (३४) ॐ स्वस्तिनःइन्द्रोवृद्धश्रवा स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः स्वस्तिनस्तारक्षोअरिष्टनेमिः स्वस्तिनो वृहस्पतिर्दधातु । दीर्घायुस्त्वाय बलायुर्वाशुभंनातायु रक्ष२ अरिष्टनेमि स्वाहाः ॥ यहां जरा गौर कीजिये कि अरिष्टनेमि जैन में २२ वां तीर्थकर है इसलिये यह मन्त्र नैनियों का होना साबित है। फिर यजुर्वेद मन्त्र--ॐ त्रैलोक्ये प्रतिष्ठाना चतुर्विशति तीर्थकरणां ऋषभादि वर्तमानान्तान सिद्धानां शरणं प्रपद्ये । अब पौराणों के प्रमाण श्रीमद्भागवत के ५ स्कन्द में श्रीऋषभदेव को साक्षान, परमेश्वर का अवतार मानकर इतिहास दिया और पाखीर में नमस्कार किया। "नित्यानुभूत निजलाभनिवृत तृष्णाः । श्रेयस्य तद्वचनया चिरसुप्तबुद्धेः । लोकस्पयोकरुणयो भयमात्म लोकमाख्या नमोभगवते ऋषभायतस्मै । ब्रह्माण्डपुराण में-"नाभिस्तु जनयेत्युत्रं मरुदेव्या मनोहरम् । ऋषभ क्षत्रिय श्रेष्ठ सर्व क्षात्य पूर्वकम् ॥ "ऋषमाद्धारतो जज्ञेवीर पूत्रं शताग्रजः । राल्भषिच भरतं महाप्राज्यमाश्रितः ॥ शिवपुराण में शिवोवाचः "अष्टषष्ठीषु तीर्थेषु यात्रायां यत् फल भवेत् । आदिनाथस्य स्मरणेनापितद्भवेत् ॥

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