Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 15
________________ . (२५) है कि जो कुछ भी मेने सुना था वो बिलकुल सत्य निकला। मिर्फ शहर में ही इलाज नहीं करते, गावों में भी जाते है। मुझे इस बात को जानकर बड़ा आनन्द हुआ कि यह अपनी चिकित्सा में आयुर्वेदीय औषधिया भी काम में लेते हैं और स्वयं बनाने का कष्ट उठाते है। मैं इनकी हर बात मे सफलता चाहता हूँ। इनसे मेरा सम्बन्ध थोड़े ही दिनों का नही है लेकिन कई पुश्तो से-चला प्रारहा है । मैं ५०) रु० गरीबो को दवा मुफत बाटने के लिये भेट करता हूँ । तारीख १५-२-१६२६ ई. द. महत फतहलाल सर्टिफिकेट डाक्टर एस. एच पण्डित डी. ओ. एम. एस इगलण्ड एम. एस, बोम्बे ता०२६-११-२६ ई. 'ये महा. शय महाराणा साहिब श्रीयुत् फतहसिह जी के नेत्रों का इलाज करने आये तत्र स्वयं अस्पताल मे आकर निरीक्षण करके दिया: 'डाक्टर बसन्तीलाल से उदयपुर मे फिर से मिलने से बहुत खुशी हुई जिनको मैं बहुत बरसो से विद्यार्थी व डाक्टरी की हालतो में बखुली जानता हूँ, हिन्दुस्तानी वं अंग्रेजी दोनो तरह की चिकित्मा को टीक तहह से जानते है इनको आयुर्वेदिक पद्धति के अनुसार इलाज करने का बहोत शोक है और यहाँ की जनता को जरुरीयात को पूरी करने के लिये ये पूरी २ कोशिश करते है, यह हर एक विषय मे अच्छा शोक रखते है और मुझे पूरी उम्मेद है कि यह अपनी महिनत व दील-चस्पी के कारण एक अच्छे चिकित्सक की शोहरत हासिल करलेगे अव

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