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का बहोड़ा जो राजश्री महकमें खाम में खास श्रीजी हजूर के दस्तखतो का है उसमें दग्न है । बि०स० १६४५ में करनल सी. के. एम. वाल्टर साहब बहादुर एजेन्ट गवर्नर जनरल राजपूताना सु० आवू ने एक सभा वास्ते कायदा राजपूत सरदारों के राजपूताना में अपने नाम से कायन की । चुनाचे उसकी शाखा उदयपुर में भी कायम हुई वि. सं० १९४६ उसमें मेम्बर सर्दार इस मुआफिक मुकरिर हुए। वेदने राव बहादुर रावजी तख्तमिजी व रात्रतजी जोधामिहजी सलूम्बर, देलवाड़े राज राणा फतहसिंहजी राय बहादुर, व महताजी राय पन्नालालजी सी. आई.ई. मेम्बर व सेक्रेटरी व महामहोपाध्याय कविराज शामलदासजी, व सही वाला अर्जुनसिहजी व पुरोहित पद्मानाथजी, व गव वख्तावरजी, यह आठ मेम्बर मुकर्रि हुए । इस सभा में तरक्की देकर महताजी मौसूफ ने इस व्यक्ति की महकमे वाम से यहाँ बदी करदी । फिर वि० सं० १६४७ में झालावाड़ में झाड़ोल व ठीकाने मादड़ी के दरमियान मौजे अदका - लिया के बराड़ का तनाजा था, उसकी तहकीकात पर भेजा गया। साथ में सवार, पहरा, ऊट, चपरासी हरकारा धोडा था। वहां तहकीकात करता था उस समय राजश्री महकमें खास से रु० नं० ११७३ मत्ररवा चेत सुद १४ वि० सं० १६४७ 'सिद्धश्री श्री वख्तावरलालजी महात्मा जोग राज श्री महकमे खास लि. प्रच' सादिर हुआ, और भी राज के महकमें जात व अ दालतों की तहरीरें इस माफिक जारी हैं। अदालत सदर दिवानी, सुन्सफी व पुलिस वगेरा से "मिद्धश्री महातमाजी श्रीख्नावरलालजी योग्य । वि स १६५८ में वास्ते फैमापन