Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 10
________________ (१२) ज्यादा रखावेगा । वि० सं० १९२० प्र० सावण विद ६ कटारिया महताजी वख्तावर सिंहजी वि० सं० १९२० वै० विद ४ पत्र "सिद्ध श्री गुरु महाराज श्रीखेमराजजी तूं महता वस्तावरसिह जी अरज मालूम होवे । महताजी रुघनाथसिहजी रो पन वि० सं० १९२६ पोष सुदी १३ । 'सिद्ध श्री श्री श्री श्री श्री १०८ श्री श्री बावजी साहब श्री खेमराजजी हजूर में कमतरीन रुघनाथसिह की दण्डवत मालूम होवे। उमरावा में देलवाड़ेराज राणा फतहसिहजी को रुको गुरुजी खीमराजजी सुराणा फतहसिह को पावॉ लागणो बाँचजो । इन पण्डितजी का परलोकवास वि० सं० १९३० का श्रावण शुक्ला १ को ३६ की आयुष्य मे हुआ इन महाशयो ने अपने अन्तकाल की तिथि से एक वर्ष पूर्व एक टीप लिखी कि वि० सं० १६३० का श्रावण शुक्ला १ क दिन मेरा शरीर छूट जावेगा और दूसरी टीप मे यह दर्ज किया कि बि० सं० [१९३१ का आश्विन कृष्णा १३ के दिन श्री जी भी स्वर्गवास पदार जावेगा । चुनाचे श्रावण सुद १ के दिन का शरीर छूट गया । यह हाल श्री रावजी रावबहादुर बख्तसिहजी बेदला ने श्री जी में अरज किया उस पर कलमदान में से दीपे निकाल मुलाहजे फरमाई गई और फरमाया कि आज खेमराज जैसा ज्योतिषी मेवाड़ मे से उठ गया श्रीएकलिंगजी की मरजी है-महाराणाजी श्री जी शम्भू सिहजी जी. सी. एस. आई का जन्म वि० सं० १६०४ पौष कृष्णा १, राज्याभिषेक वि० सं० १६१८ का सुद १५ स्वर्गवास सं० १९३१ का आश्विन कृष्णा १३ हुआ।

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