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"बच्चे का भाग्य सदैव उसकी मां द्वारा निर्मित होता है। वह अपने बच्चे बच्चियों को शिक्षा देती है। कारण मातृप्रेम है। मां अपने बच्चे के जीवन का किस प्रकार ऊर्वीकरण करती है यह समझना भी नितान्त आवश्यक है। एक घटना याद आरही है-ग्रीष्म ऋतु की अत्युत्कट सख्त धूप पड़ रही है। पृथ्वी गर्मी के मारे तप्त लोहे की भाँति ऊष्ण हो रही है। राजमार्ग सूने पड़े है, पशु वर्ग भी वृक्षों की शीतल छाया में आराम कर रहे हैं। पक्षीगण तरु डाल में पत्तों के मध्य छिपे बैठे हैं । गृहस्थ वर्ग खा-पीकर आराम करने की तैयारी कर रहा है । ___ उपाश्रय से भद्रामाता अपने पुत्र अर्हन्नक मुनि का चन्द्रमुख देखकर गहन आनन्द अनुभव करती हुई स्वस्थान की ओर चली गयी है। - साधु मुनियों को मध्याह्न के पश्चात् ही भिक्षा-गोचरी के लिए निकलना चाहिए । अर्हन्नक मुनि भी इसीलिए अन्य साधुओं के साथ गोचरी के लिए निकले।
किन्तु हाय ! कभी जिसने धूप मे पैर न रखा हो वह नंगे पैर कैसे चल सकता है ? अल्प दूरी तक चलते ही उनके पैरों में छाले पड़ गये। केश विहीन मस्तक तो मानों सूर्य के असह्य प्रचंड ताप से अभी ही फट जायेगा,ऐसा लगता था। उनका मुह लाल सूर्य हो गया। सारा शरीर मानों मोम की भाँति गलकर प्रस्वेद से तरबतर हो गया किन्तु अन्य मुनि तो इसी समय भिक्षा पर जाने के अभ्यस्त थे । अतः उन्हें इतना कष्टकर न लगा। आज तक अर्हन्नक मुनि भिक्षा मांगने
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