Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 75
________________ ६४ उसकी शक्ति सिंह की शक्ति के समक्ष पहाड़ के सामने एक छोटा-सा कंकर हैं। पर ममता तो ऐसी ही है कि पहले माँ मरेगी फिर शिशु । यह वातावरण 'मानतुङ्ग सूरि' रचित 'भक्तामर स्तोत्र' ग्रन्थ में मिलता है "प्रीत्माssत्म वीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्र | नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥ अर्थात् - , ज्यों प्रीतिवश निज शिशु बचाने को मृगी जाती भली । वनराज से निर्भय बनी साहस सहित भिड़ने चली ॥ ( भंवरलाल नाहटा ) प्रतिपल-प्रतिक्षण सन्तान का कल्याण चाहने वाली अभ्युदयाकांक्षिणी माँ हमेशा उदार हृदया है । पत्थर जब खान में से निकलता है, तब उस की अवस्था बेड़ोल, खुरदरी एवं भद्दी होती है । उस स्थिति में उस का कोई उपयोग नहीं होता । परन्तु जब वह शिल्पी के हाथों में चला जाता है तो वह हथोड़े मार-मारकर, उसमें अपनी कला उड़ेल कर, उसे सम, सुन्दर और कलामय बना देता है । हमारे जीवन का प्रारम्भ भी पत्थर के समान है, परन्तु उसमें जीवन-शिल्पी माँ प्रसंस्कृत एवं भद्दे जीवन रूपी पत्थर को भी सुन्दर और आदर्शमय बना देती है । संतान हेतु अपने पेट पर पट्टी बांध कर उसको खिलाती है, उसकी श्रसंख्य भूलों को क्षमा कर देती है ऐसी माताओं के ज्वलंत उदाहरण विश्व में सर्वकाल एवं सर्वस्थल पर परिलक्षित हुए हैं, होते हैं और होते रहेंगे । यद्यपि हमने अतीत को देखा है व्यतीत को नहीं । पर शास्त्र वचन मेरी बात के साक्षी है माँ बेटे का रिश्ता वह है, जो कभी टूट सकता नहीं है । छूट जाये चाहे सारी दुनियां, पर यह टूट सकता नहीं है ॥ इसी कारण अधोलिखित कहावत ने जगत् की तमाम भाषात्रों में समुचित स्थान प्राप्त किया है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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