Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 121
________________ ११० अक्षम्य हो जाता है तो माँ के प्रति आपके द्वारा किये गये व्यवहार को भी आपको विचारना चाहिए । “प्रात्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत्" । विस्मृत मत करो कि इसका उपकार तो हम पर असीम है। कष्ट पाकर जन्म देती है, पालती है, पोसती है, पढाती-लिखाती है । इन सब प्रयासों में वह न जाने कितने कष्ट सहन करती है और उसका आप फल क्या देते हैं ! तारे आकाश की कविता है तो माँ पृथ्वी की। आपका क्या सारे संसार की यह तो भाग्य-विधाता है। शास्त्र-वचन तो यही है “यन्माता पितरौ कष्टं, सहेते सम्भवे नृणाम् । न तस्य निष्कृति शक्या, कत्त कल्पशतैरपि ॥" मनुष्य को पैदा करने में जो माँ कष्ट सहन करती है उसका बदला सैकड़ों कल्पों में भी हम नहीं चुका सकते। ___ अतः हमें मां के प्रति पूर्ण अहिंसा का भाव रखना है। इससे तात्पर्य उसके प्रति सद्भाव से है। अहिंसा का विकृत रूप हिंसा है जो तीन प्रकार की होती है-(१) मानसिक हिंसा (२) वाचिक हिंसा (३) कायिक हिंसा। जब सन्तान मां का अहित या हानि की बात सोचते हैं तो वह मानसिक हिंसा होती है । जब अपने कठोर, किंवा, असत्य वाणी द्वारा माँ को कष्ट पहुंचाते हैं तो वह वाचिक हिंसा होती है जब हम उनका हनन करते हैं, मारते-पीटते हैं तो उसे कायिक या कर्म सम्बन्धी हिंसा कहते हैं। माँ के प्रति इन तीन प्रकार की हिंसा का परिहरण ही माँ के प्रति अहिंसा कहने में आयेगी। स्वर्गीय कवि फिराक ने तो अपनी माँ के प्रति "जुगनू" रचना में कहा है "कभी-कभी मेरे पायल की आती है झंकार । तो तेरी आँखों से आँसू बरसने लगते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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