Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 123
________________ ११२ उसमें अश्रद्धा करने से,उनके कथन के विपरीत प्ररुपण करने से प्रतिक्रमण किया जाता है। __ ऐसा करना आपके लिए उपयोगी, महत्वपूर्ण एवं करणीय भी है। प्रतिक्रमण गत समय में माँ से किये गये अव्यवहार का होता है, प्रत्याख्यान भविष्य में ऐसा न करने और शुभ कार्य हेतु किया जाता है, और आलोचना वर्तमान दोषों के परिहारार्थ करते हैं । ___"इमाई छ अबयणाई वदित्तए-अलियवयणे, हीलियवयणे खिसित वयणे, फरूसवयणे, जारत्थियवयणे, विउसक्तिं वापुणो उदीरित्तए।" (श्री स्थानांग सूत्र) हमें असत्य वचन, तिरस्कार युक्त वचन, आवेश में वचन, कठोर वचन, अविचारपूर्ण वचन, एवं हुए कलह को पुनः जागृत करने वाले ये षट्वचन माँ से कभी नही बोलना चाहिए । - कष्टकारक वचन मन को भेद देते हैं। महाभारत में अनुशासनपर्व में कहा भी है "कर्णिनालीक नाराचान, निर्हरन्ति शरीरतः। वाक्शल्यस्तु न निहतु, शक्यो हृदिशयोहि सः॥" बन्दूक की गोली तो प्रयत्न करने से निकल ही जाती हैं किन्तु वचन का शल्य हृदय में चुभता ही रहता है । साधारण भाषा में मारे शब्दों का घाव भर जाये पर तीखे वचनों का घाव कभी नहीं भरता। कहावत है-'तलवार का घाव भर जाता हैं पर अपमान का घाव कमी नहीं ।” उभयकाल में माँ के चरण स्पर्श करने चाहिए। इससे भी पापों से मुक्ति मिलती है। "इक्कोवि नमुक्कारो" मात्र एक बार श्रद्धा से नमस्कार करने से बेड़ा पार हो जाता है। बीज को तोड़कर वृक्ष को बाहर निकालने का प्रयास व्यर्थ है । अगर विकास चाहते हो तो विश्वास सहित सोंप दो रेत को और जल सींचो, मूल तक जायेगा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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