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अन्त में मैं इस आशा के साथ; आशा के साथ ही नहीं बल्कि पूर्ण आत्म विश्वास के साथ अपनी लेखनी को विराम देता हूं कि आप इसको पढकर सोचेंगे, विचारेंगे और मनन करेंगे । श्रध्ययन कर सत्यान्वेषण करेंगे | आलोक तभी हो सकता है जब तम समाप्त हो । कारण प्रभात होने से पूर्व अन्धकार होता है । फुलर ने भी कहा है— "It is always darkest just be for the day daw neth."
माँ तुझे कोटि-कोटि नमस्कार है । क्योंकि
है युग युग से प्रज्जवलित, तेरी अक्षय अविरल ज्योत । लोकांश को पाकर, मैं करता हूं विश्व में उधोत ॥ "
उसी
मेरी भावना
स्वीकृत करो इसे या न करो; इच्छा आपकी !
हम तो मुसाफिर ऐसा कहकर ; चले जाएँगे ! खिदमते माँ-प्रेम-सुधारस पीकर ; मर जाएँगे !
नाम स्वयं का जगत् में रोशन; कर जाएँगे !
माँ के असीम महात्म्य की झड़ियां ; लगाके जाएँगे !
माँ ही सर्वोच्च है, मानव संपुट को; सुनाके जाएँगे !
स्वीकृत करो इसे या न करो; इच्छा आपकी !
हम तो भारतवासी अपना फर्ज ; निभाके जाएँगे !
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