Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 124
________________ अन्तस्तल भीगेगा, फिर फूटेंगे किसलय और महकेंगे फूल । अतः टूट पड़ो माँ की गोद में, झुक पड़ो माँ के चरणों में, खो पड़ो माँ के दर्शनों में, । मर पड़ो माँ की सेवा मैं, ___ लग पड़ो माँ की वन्दना में । पीतल के बर्तनों को यदि हमेशा साफ नहीं किया जाए तो वे अपनी चमक खो बैठते है उसी प्रकार यदि हम माँ को नित्य करणीय नमन नहीं करेंगे तो जीना व्यर्थ हुए बिना नहीं रहेगा। जल-रहित अकेला साबुन, अरीठा या सोढ़ा शरीर से रगड़ने से शरीर का मैल कदापि नहीं उतरेगा बल्कि शरीर छिल जायेगा। नमस्कार यह जल है नमः इदुग्र नमः, नमो देवोभ्यो नमः (नमस्कार सबसे बड़ी वस्तु है, देवता भी नमस्कार के वशीभूत होते हैं ।) पुर्ववत् कथन कि हमें स्वयं को यह नहीं भूलना चाहिए कि माँ की तृप्ति में ही अपना सुख एवं कल्याण है । इसके विषय में क्या लिखू ? यदि कागज के रूप में पृथ्वी बनायूँ सारे जंगल को लेखनी और सातों समुद्र को स्याही बनालूं, तो भी माँ के विषय में विश्लेषण करना असंभव है, असक्य है । अवर्णनीय और शब्दातीत है। ___ मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत के नवनिर्माणार्थ माँ के प्रति अपना कर्तव्य पूर्ण कर समाज के सम्मुख आप एक नूतन आदर्श प्रस्तुत कर मेरे यत्न को सफल बनायेंगे। आखिर माँ से तो हम उत्पन्न हुए है यदि वह नहीं होगी तो हम सब कहाँ से......! रामराज्य को स्थापित होने में, रावण के अन्त और सीता के लौटने में, मानवता की विजय और दानवता की पराजय में, स्वार्थ प्रेरित कैकेयीवाद का हृदय-परिवर्तन करने में राम को चौदह वर्ष लगे थे । तो आपको तो बहुत कम समय लगेगा क्योंकि न तो आपके सामने धूमकेतु रावण जैसा पराक्रमी योद्धा है और न ही सीता जैसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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