Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ ११४ पत्नी का अपहरण तथा न ही वानरों की सामूहिक शक्ति की आवश्यकता । अतः उन्हें चौदह वर्ष लगा तो आपको तो अति अल्प समय लगेगा। यदि ऐसा नहीं किया तो मरते समय पछताओगे हमने माँ की सेवा नहीं की। हम उसके ऋणी हैं। हम उसका चक्रवर्ती ब्याज तो क्या मूलधन भो नहीं चुका पाये और अधिक जोने की आकांक्षा रखेंगे। किन्तु जीवन में माँ के प्रति स्वयं के कर्तव्य का कितने अंश में पालन किया, इसकी चिन्ता नहीं करेंगें। उर्दू शायरी सुप्रसिद्ध है हो उम्र खिज्र भी तो कहेंगें बवक्ते मर्ग । क्या हम रहे यहाँ अभी आये अभी चले ॥ अतः जब तक इस तन को व्याधि ने नहीं धेरा है, जब तक बुढ़ापा निकट नहीं आया है और यम नामक घोर दुश्मन ने अपना कूच का नगाड़ा नहीं बजाया है तथा जब तक बुद्धि सठिया नहीं गई तब तक कर्तव्य का पालन कर ले । हमारा कर्तव्य हमें मोन संकेतात्मक निमन्त्रण दे रहा है । निमन्त्रण स्वीकार कर लें। अंग्रेजी कहावत"When dudy calls,we must obey. प्रसिद्ध है। गुरु गोविन्द सिंह के छोटे सुकुमार पुत्रों को जिन्दा ही दीवार में चिन दिया गया। किन्तु वे सपूत, अमर शहीद, भारत माँ के लाडले अपने स्व कर्तव्य से विचलित नहीं हुए। कितनी ही प्रांधियां तेज हुई, कितना ही भय का सागर गरजा, कितना ही भयंकर कष्ट सहना पड़ा परन्तु अपने कर्तव्य की पूर्ति हेतु मार्ग से विचलित नहीं हुए और जिन्दा ही मृत्यु के ग्रास बन गये। पर सत्यता यह है कि उन्हें मौत मार न सकी, शत्रु झुका न सका अपने कर्तव्य से । सर्वदा के लिए अमर कर गये अपना नाम । सत्य है यूँ तो जीने के लिए लोग जिया करते हैं, लाभ जीवन का फिर भी नहीं लिया करते हैं। मृत्यु से पहले भी मरते हैं हजारों लेकिन, जिन्दगी इनकी है जो मर के जिया करते हैं ॥" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128