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________________ ११५ अन्त में मैं इस आशा के साथ; आशा के साथ ही नहीं बल्कि पूर्ण आत्म विश्वास के साथ अपनी लेखनी को विराम देता हूं कि आप इसको पढकर सोचेंगे, विचारेंगे और मनन करेंगे । श्रध्ययन कर सत्यान्वेषण करेंगे | आलोक तभी हो सकता है जब तम समाप्त हो । कारण प्रभात होने से पूर्व अन्धकार होता है । फुलर ने भी कहा है— "It is always darkest just be for the day daw neth." माँ तुझे कोटि-कोटि नमस्कार है । क्योंकि है युग युग से प्रज्जवलित, तेरी अक्षय अविरल ज्योत । लोकांश को पाकर, मैं करता हूं विश्व में उधोत ॥ " उसी मेरी भावना स्वीकृत करो इसे या न करो; इच्छा आपकी ! हम तो मुसाफिर ऐसा कहकर ; चले जाएँगे ! खिदमते माँ-प्रेम-सुधारस पीकर ; मर जाएँगे ! नाम स्वयं का जगत् में रोशन; कर जाएँगे ! माँ के असीम महात्म्य की झड़ियां ; लगाके जाएँगे ! माँ ही सर्वोच्च है, मानव संपुट को; सुनाके जाएँगे ! स्वीकृत करो इसे या न करो; इच्छा आपकी ! हम तो भारतवासी अपना फर्ज ; निभाके जाएँगे ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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