Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 120
________________ १०६ तलाक, स्त्रीस्वातन्त्र्य, वृद्धों युवक-युवतियों के विचार-संघर्ष, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता बनाम समाज, आर्थिक उलझनें, धर्म बनाम विज्ञान वगैरह तो वर्तमान समाज की साधारण समस्या है । परन्तु माँ प्रभृति के सम्बन्धों में एक दूसरे के प्रति मर्यादाभाव या असभ्यता चारों तरफ विकसित होती चली जा रही है, वह समस्या भारतीय संस्कृति पर महाकलंक है । यह वर्तमान युग की महाभयंकर, प्रलय -- कारी, संक्रामक रोग जैसी ज्वलन्त समस्या है। जिस प्रकार दृश्य काव्य हो या श्रव्य, विषयगत हो या विषयगत | इसके जगह दृष्टिगोचर होते है, इसी प्रकार ये समस्याएँ किसी न किसी रूप में विद्यमान रहती हैं । भेद - उपभेद सब भी छोटी-बड़ी आपको यह ज्ञात नहीं है कि माँ के हित के लिए जीवन का उत्सर्ग करने में जिसने यथार्थ श्रह्लाद आनन्द स्वीकार किया है वही जीवन का वास्ततिक कलाकार है । जिसने माँ की सेवा के लिए, उसके दुःख-दर्द समाप्त करने के लिए कुछ प्रयत्न ही नहीं किया वह हाथ पैरों वाला होते हुए भी पंगु है । श्राँखों के होते हुए भी अन्धा है, तन के समस्त श्रवयव विद्यमान होते हुए भी अपाहिज है । पूँजीवान होते हुए भी भिखमंगे के समान हैं, जिसने माँ की सेवा नहीं की क्या उसका भी कोई जीवन है ? नरक समान है। बीजारोपण करते हैं बबूल का और ग्राम खाने की इच्छा रखते हैं । यही है न आपकी फलासक्ति का फल | स्मरण रहे ! माँ जो हमारी प्रकृति है, परिवार का जीवन है, प्रगति का आधार है, संस्कृति की निर्माता और शक्ति का स्रोत है। जिसको सुख, लक्ष्मी और शक्ति का प्रतीक माना गया है । उसके साथ ऐसा व्यवहार ! धिक्कार है, मन ग्लानि से भर उठता है । पर क्या करें ? यदि आप पत्थर हैं तो पारस बनो, वृक्ष है तो लाजवन्ती का पौधा बनो, यदि मनुष्य हो तो माँ से प्रेम करो शुद्ध व सात्विक भाव से । अन्य के द्वारा आपके प्रति गलत किया गया व्यवहार आपको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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