Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 97
________________ हम अपने युग तथा अपनी मान्यताओं को भूल चुके हैं। हम जमाने को नकल कर आगे बढ़ रहे हैं । अतः यथार्थ को ढूंढिये । अपनी नीयत क्यों बिगाड़ते हो ? यथार्थ को समझो । प्राचीन जंगली जानवर भी मत बनो और आधुनिकता की टोपी भी मत पहनो। प्राचीन सभी बुरा है या नवीन सभी अच्छा है ऐसा नहीं है । दोनों का समन्वय करना सीखें । कर्तव्य को समझो जिस इन्सान को अपने कर्तव्य का ज्ञान नहीं वह जीवित होते हुए भी पृथ्वी पर मृतक के समान है । ___ यद्यपि गन्ने को हाथ में लेंगे पर उसमें से रस तब तक नहीं निकलेगा जब तक मुह से चूसेंगे नहीं। घुघरू पांव में पहनेंगे पर राग तभी निकलेगा जब पैर ठुमकायेंगे। फूलों का गुच्छा हाथ में लेंगे पर नाक के समीप नहीं ले जायेंगे तब तक सुगन्ध नहीं आयेगी। हमने मानव आकृति तो पाई पर मानव प्रकृति नहीं पायेंगे तो प्राकृति भी धन्य-धन्य नहीं होगी। हम बच्चों पर अनुशासन करें लेकिन स्वयं अनुशासित रहकर । हमारा आचरण ही दूसरों को कुछ सिखा सकता ___आप में परिवर्तन होगा तभी आप दूसरे में परिवर्तन लाने में सफल हो सकेंगे। आप यदि अपने बच्चों से अपनी सेवा करवाना चाहते हैं तो आप भी माँ की सेवा करो। आप करेंगे तभी आपके बच्चे आपकी करेंगे। दूसरों को बदलने से पूर्व स्वयं को बदलना होगा । कुछ पाने के लिए खुद दीपक बनकर जलना होगा। निद्राधीन मत होइये । जागो, उठो। जीवन लोहा जैसा बन गया, पारस स्पर्श करदो। इसके संग से लोहा भी सोना बन जायेगा। अत:"उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है। जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है।" मैने देखा, समझा और अनुभव किया है कि प्रत्येक की यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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