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अकबर समद अथाह, सूरापण भरियो सजल ।
मेवाड़ी तिण माँह, पोयण फूल प्रताप सी॥" हे माता ! तू ऐसे पुत्र को जन्म दे जैसा राणा प्रताप है । जिसको अकबर सिरहाने का साँप समझ कर सोता हुआ जाग पड़ता है। अकबर अथाह समुद्र है जिसमें वीरता रूपी जल भरा हुआ है परन्तु मेवाड़ का राणाप्रताप उसमें कमल-पुष्प की भाँति खिल रहा है। अतः माई ! ऐसे पुत्र को जन्म दें जैसे राणा प्रताप । अर्थशास्त्री प्राचार्य चाणक्य ने (महात्मा कौटिल्य के नाम से भी अभिहित) एक स्थान पर लिखा है कि सैकड़ों गुण रहित पुत्रों की अपेक्षा एक गुणी पुत्र श्रेष्ठ है । एक चन्द्रमा ही समस्त अन्धकार को नष्ट कर देता है, सहस्र तारे नहीं।
"एकोsपि गुणवान्पुत्रो, निर्गुणैश्च शतैर्वरः।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति, च तारा सहस्रशः ।।" सिद्धयोगी भर्तृहरि ने भी कहा है-जिस प्रकार सूर्य अकेला ही अपनी किरणों से समस्त संसार को प्रकाशमान कर देता है उसी प्रकार एक ही वीर अपनी शूरता, पराक्रम और साहस से सारी पृथ्वी को अपने पैरों के नीचे कर लेता है आज मरुदेवी का पुत्र ऋषभ विद्यमान नहीं है, परन्तु उसकी ज्योति युगों तक जलेगी । अमेरिकन कवि लांगफैलो की भी यही मान्यता है कि "बड़े प्रादमी मर जाने पर अपनी ज्योति छोड़ जाते हैं जो उनकी मृत्यु के बाद जगमगाती रहती
आजकल पुत्र-पुत्री माँ के प्रति कर्म भी अधिकांशतः इतने बुरे और असह्य हो जाते हैं कि अन्य जन उनको बुरा समझकर ही नही रहते । छि: ! छि: !! छिः !! करके भी सन्तोष धारण नहीं कर लेते; उसकी धुलाई-कुटाई मरम्मत करने के लिए भी उतारू हो जाते हैं और माँ भी देव से प्रार्थना करने लगती है-"अस्त्रीय जनम काइ दीधऊ रे महेश, अवर जनम थारइ घणा रे ररेश ।" (बीसलदेव रास)
जो हमेशा माँ से उचित व्यवहार करता है, वह व्यक्ति, व्यक्ति
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