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मिलन कराने के लिए पहले ही सिद्धपुरी में प्रवेश किया। एक ही सुपुत्र के कारण सिंहनी वन की साम्राज्ञी होती है किन्तु दस नालायक पुत्रों के होते हुए गधी भार ढोते ढोते मर जाती है । कवि सम्राट् आचार्य श्री मानतुंग सूरि ने माँ-पुत्र की इस अनोखी जोड़ी का वर्णन इस प्रकार किया है
"स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्,
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नान्या सर्वादिशो दधति भानि प्राच्येव दिग्जनयति
त्वदुपमं जननी प्रसूता । सहस्ररश्मिं, स्फुरदंशुजालम् ॥” ( भक्तमारे स्तोत्र २२)
He Suggests the natural birth of God. Hundreds of woman give birth to hundreds of sons but not mother (except Thine) give birth to a son that Could Stand (out in) Comparison with Thee. In all the directions there are (lit all the quarters contain) Constellations, but it is only the east brings forth the sun having a Collection of resplendent rays.
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और काव्यात्मकता के रूप में साहित्यकार व कवि भंवरलाल नाहटा द्वारा किया गया भाषानुवाद है -
"सुत जन्म देती हैं सहस्रों नारियां नित लोक में । किन्तु नहीं समकक्ष प्रभु के लक्ष लक्ष अनेक में ॥ दिशि विदिशि में नक्षत्र तारे उदित अगणित हैं सही । प्राची दिशा बिन अन्य कोई भानु उपजाती नही ॥ वर्तमान युग में ऋषभ देव या महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर पुत्र के समान दूसरा नहीं हुआ । मध्यकालीन डिंगल भाषा के सर्व श्रेष्ठ राजस्थानी कवि पृथ्वीराज ने अपने काव्य में जो अभिव्यक्त किया है, उसमें जो सुष्ठु विवृति हुई है । वह भी मनननीय है
"माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राणा अकबर सूतो प्रोभ के, जाण सिरा
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प्रताप । साँप ॥
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