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सजग होकर उसका सच्चाई और ईमानदारी से पालन कीजिए। पौर स्व लक्ष्य को प्राप्त कीजिए । क्योंकि आप-.
माता तन का सार, पिता का तू सर्वस है, दोनों का संसार, वंश का विस्तृत यश हैं । माता-पितानुराग, प्रकट यह तेरा तन है, मूर्तिमान सौभाग्य, पुत्र तू अद्भुत धन हैं । जब तू जग में आय, भूमि पर गिर कर रोया, माँ ने हिये लगाय, कष्ट सब अपना खोया।
-कामता प्रसाद गुरु प्रसिद्ध हिन्दी लेखक व कवि कामता प्रसाद गुरु का उपर्युक्त पद्य एक युवक के हृदयंगम हो गया। इस युवक की घटना हमारे लिए नैतिकता की नूतन प्रकाशशिखा है। नीचे लिखी घटना से उसका सपूतपन भली भांति प्रकट हो जाता है ।
माँयें अनेक जनती जग में सुतों को, है किन्तु वे न तुझसे सूत की प्रसूता । सारी दिशा धर नहीं रवि का उजाला,
पै एक पूरव दिशा रवि को उगाती ॥ वह युवक माँ का एक ही पुत्र था। परन्तु था सपूत ! अपनी माँ की आज्ञा वह सदा मानता था। मां की सेवा करना और उसे सुख पहुंचाने का काम करना उसे अच्छा लगता था। माता की सेवा करने में अपने को कुछ कष्ट होता तो उस कष्ट को भी वह बड़ी प्रसन्नता से सह लिया करता था ।
एक समय उस युवककी माँ बीमार पड़ी। यूवक सब प्रकार से माँ की सेवा में जुट गया। जब वह दुकान चला जाता तब बहू सास की सेवा करती।
एक दिन दूकान बन्द करके युवक घर को पाया। रात के प्रायः
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