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कठिन है । ( जवा लोहमया चेव चामेयव्वा सुदुक्करं । )
आप माँ से निश्छल और निष्कपट भाव से प्रेम कीजिए । प्रेम का भाव रहने से यह मार्ग सीधा है अन्यथा बड़ा टेढ़ा हो जाता है । मेरा पूर्ण विश्वास है कि आप भी इस मार्ग पर अवश्य चलेंगे क्योंकि मैं प्रेम-पंथ की वास्तविकता, सत्यता और उससे लगन के जो भाव प्रकट कर रहा हूं उसे प्रेम-पथिक रसखान ने भी व्यक्त किया हुआ है-
" कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड्ग की धार । प्रति सूधो टेढ़ो बहुरि प्रेम पंथ अनिवार ।। " ( रसखान रत्नावली - प्रेम-वाटिका ) माँ से हमारा प्रेम होना अति अनिवार्य हैं, क्योंकि करुणा, सहानुभूति एवं स्नेह के अभाव में हृदय में रूक्षता रहती है । समाज सुधारक भक्त कवि कबीर ने कहा भी है
जा घर प्रेम न संचरे, सो घर जान मसान । जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्रान ॥"
प्रेम शून्य हृदय श्मशान बराबर है। कबीर ने प्रेमरहित हृदय को लुहार ही धोंकनी के समान बताया है । जिसने प्रेम को जान लिया, पा लिया तो इस उपलब्धि के समक्ष सारे ऐश्वर्य नगण्य है चाहे वह फिर
"प्रात होते सगरी नगरी नग मोतिन ही की तुलनि तुलैयत ।” यदि एक बार ही उसके प्रेम के स्वरूप को समझ लिया, गहराई में उतर कर पहचान लिया तो उसे जीते जी प्राप्त करने के लिए नहीं छोड़ सकेंगे । यदि ऐसा हो गया तो आप कैंकर - पुष्प से मिटकर गुलाब के पुष्प में परिवर्तित हो जायेंगे और फिर मर कर भी किसी को याद आयेंगे । किसी के प्रश्रों में मुस्करायेंगे । फूल कहेगा हर कली से कि जीना इसी का नाम है ।
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वर्षा-योग के दिनों में नदी में पूर आती है, तब समीपवर्ती तट का सम्पूर्ण कचरा बहाकर ले जाती है। हमारे भीतर भी प्रेम स्नेह
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