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मैं आपको वही बता रहा हूं जिसकों मैंने स्वयं सुना है, देखा है कि श्राज के युग में माँ से तो प्रेम है ही नहीं बल्कि साथ ही मातृभूमि से भी घृणा है । प्रत्येक व्यक्ति स्वदेश छोड़कर विदेश गमन करना चाहता है। जन्म होते ही विदेशीभाषा अंग्रेजी से शादी की अभि लाषा होती है । परन्तु उनको यह मालूम नहीं है जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है कि- - मातृभाषा का अनादर माँ के अनादर के समान है । जो मातृभाषा का अपमान करता है वह स्वदेशभक्त कहलाने योग्य नहीं है । हमारी भाषा हमारा अपना प्रतिबिम्ब है । विदेशी भाषा द्वारा शिक्षा पाने की पद्धति से अपार हानि होती है । देशी भाषा का अनादर राष्ट्रीय श्रात्म हत्या है । परायी भाषा के साहित्य से ही आनन्द लूटने की चोर आदत जैसी है । ...... जिस भाषा में बहादुर सच्चे और दया वगैरह के लक्षण नहीं होते, उस भाषा के बोलने वाले बहादुर, सच्चे और दयावान नहीं होते ।...माँ के दूध के साथ जो संस्कार मिलते हैं और जो मीठे शब्द सुनाई देते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिए वह विदेशी भाषा द्वारा शिक्षा लेने से टूट जाता है । जिसे तोड़ने का हेतु पवित्र हो तो भी वे जनता के दुश्मन हैं ।
डा० जानसन की मान्यता है कि “भाषा विचार की पोशाक है ।" " जब भाषा का शरीर दुरस्त, उसकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म नाड़ियाँ तैयार हो जाती हैं, नसों में रक्त का प्रवाह और हृदय में जीवन स्पन्द पैदा हो जाता है तब वह जीवन यौवन के पुष्प पत्र संकुल बसन्त में नवीन कल्पनाएँ करता हुआ नयी-नयी सृष्टि करता हैं ।"
( - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला') मातृ भाषा में माँ की ममता और जन्मभूमि का प्यार है । जब हम उसका प्रयोग करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे हमारा बचपन वापस मिल गया हो । वेद मंत्र तो आपने सुना ही होगा
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