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फल से दिव्यात्मा बनकर विमान पर बैठकर स्वर्ग को जा रहा है। श्रवण कुमार ने आश्वासन देते हुए अपने माता-पिता से कहाआपकी सेवा करने से मैंने उत्तम गति प्राप्त की है। आप मेरे लिए शोक न करें।
सूखी लकड़ियाँ एकत्र कराकर उस पर श्रवण का मृत देह रखा गया। पुत्र को जलाञ्जलि दी और उसी चिता में गिरकर शरीर . छोड दिया और माता-पिता उत्तम लोक को प्राप्त हए।
इस प्रकार श्रवण ने माता-पिता की सेवा करके उस धर्म के प्रभाव से अपना तथा माता-पिता का भी उद्धार कर दिया।
धन्य हो गये वे ऐसे सपूत को पाकर जिसका नाम विश्व समाज में आदर के साथ लिया जाता है । गोस्वामी तुलसीदास जी का निम्न कथन सत्य ही है।
"सुन जननी सोई सुत बड़ भागी, जो पित मात बचन अनुरागी। तनय मातु पितु तोष निहारा, दुर्लभ जननि सकल संसारा ॥"
(रामचरितमानस, अयोध्या कांड) हे माता ! सुनो! वही पुत्र बड़ा भाग्यशाली है जो माता पिता का प्राज्ञाकारी होता है। आज्ञा पालन द्वारा माँ को संतुष्ट करने वाला पुत्र हे जननी सारे विश्व में दुर्लभ है।
श्रवण कुमार जैसे महापुरुषों की जीवनियाँ हमें याद दिलाती है कि हम भी अपना जीवन महान बना सकते हैं और मरते समय अपने पद-चिन्ह समय की बालू पर छोड़ सकते हैं । अमेरिकन कवि लांगफैलो के अनुसार भी
"Lives of great men all remind us, we can make our lives sublime And departing leave behind us footprints on the sands of time."
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