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.. माँ के रूप में..... ऐवन्ता मुनि की माँ यद्यपि एक माँ थी और उनके हृदय में पुत्र के संयम लेने पर अपार दुख का होना स्वाभाविक था। किन्तु उन्होंने अपने पुत्र के प्रात्मकल्याण में बाधा देना उचित नहीं समझा । विपरीत यह सुन्दर सीख दी..... बेटा ! तू दीक्षा लेने जा रहा है । अतः मेरा विकल और दुःखी होना स्वाभाविक है । तेरे प्रति रहा हुआ मोह मुझे रह रह कर सता रहा है एवं तेरा वियोग मेरे लिए अत्यन्त कष्टकर है। किन्तु मेरा यही कहना है कि संयम ग्रहण करके तू ऐसी करनी करना, जिससे पुनः किसी माता को तुझे जन्म देकर रोना न पड़े। क्योंकि फिर जन्म लोगे तो फिर दीक्षा लेनी पड़ेगी और वह माँ भी मेरी तरह रोएगी। अतः जन्म-मरण सदा के लिए मिट जाये ऐसी करनी करना ।
बड़े-बड़े योद्धाओं, सन्तों, अवतारों यहां तक कि तीर्थंकर भगवन्तों को जन्म देने का श्रेय इसी माँ को प्राप्त है अन्य किसी को नहीं हैं।
मोक्षगामी माँ की कोख से ही तद्भव मोक्षगामी तीर्थकर और ६३ शलाका पुरुषों की उत्पत्ति होती है । गर्भ के पूर्व होने वाले १४ स्वप्नों को देखने की अधिकारी भी है। सभी महान कार्यों के प्रारम्भ में इसी का हाथ रहा है।
फेंच कवि व राजनीतिज्ञ लमार्टिना ने तो स्पष्ट कहा है "There is a woman at the begirnning of all great things."
माँ वह प्रथम व्यक्ति है जिसके सम्पर्क में मनुष्य जन्म के तुरन्त बाद आता है। यह भी शैशव काल में मानव जीवन की नींव रखती है। इतिहास साक्षी है कि सृष्टि में जितने महापुरुष हुए हैं उन्हें महान् बनाने में उनकी माँ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। शिवाजी...... यदि शिवाजी की माँ उनमें वीरता का संचार न करती तो वे कभी भी महान योद्धा नहीं बनते । गाँधी जी की माँ उनमें यदि राष्ट्र प्रेम और धर्म की रुचि पैदा नहीं करती तो क्या आज वे 'राष्ट्रपिता'
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