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एवं व्यवहारों में परिवर्तन लाना होगा। यह सब काम करें इससे Newsलय पूर्व माँ से विनय करना अपरिहार्य है। विनय से जीवन रूपी स्वर्ण के संग लगे हुए अभिमान, क्रोध, लोभ, मोह और माया आदि जो घृणित प्रवृत्तियाँ है उन सभी के कणों को तपाकर निकाल देना है और जीवन रूपी सोने को शुद्ध व चमकीला बना देना है। जिसके द्वारा सद्गुण रूपी आभूषण निर्मित किये जाते हैं। यह तो यथार्थ है कि जब तक स्वर्ण नरम नहीं होगा तब तक उसमें नग नहीं जड़ा जा सकता। सद्गुणों के नग जड़ने हेतु जीवन रूपी सोने को नरम करना होगा। नम्रता ही वास्तविक आभूषण है । विनयशीलता होनी चाहिए उसी से विद्या का प्रादुर्भाव होगा।
माँ-व्यवहार । प्रार्थिक स्थिति की जिस प्रकार से मानव समालोचना करता है उसी प्रकार माँ के प्रति हमारा क्या व्यवहार है उसकी भी समालोचना करनी चाहिए। प्रत्येक जन को मनन करना चाहिए कि मेरा माँ से कैसा व्यवहार होना चाहिए और वर्तमान में कैसा है ? उसमें जो त्रुटी है उसे दूर करने का उपाय क्या है ? यदि इस न्यूनता को दूर नहीं किया गया तो इसका परिणाम क्या होगा? इस प्रकार माँ से अच्छा व्यवहार करने की समीक्षा करने पर आपको अच्छे बुरे का स्पष्ट पता लग जायेगा। सही चित्र आपके सामने उपस्थित होगा। समझना आपकी तीक्ष्ण बुद्धि का कार्य है।
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