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६७ . ही बातों में उसने कहा—क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?
नवयुवक बोला-"अब मैं तेरे बिना जिन्दा एक पल भी नहीं रह सकता।"वासना-पूर्ति हेतु तड़कते युवक को प्रत्युत्तर रूप में वेश्या बोली "यदि तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो तो मेरे कथनानुसार करना होगा। जो मुझे चाहिये वह लाकर देना होगा।" अांख का अन्धा शायद ठीक हो सकता है पर प्रेम का अन्धा कभी नहीं। वह तो उसके प्रेम में पागल हो चुका था। “जो माँगोगी अवश्य मिलेगा। तेरे लिए जरो-जमीन तो क्या, आकाश के चाँद सितारे भी पृथ्वी पर ला दूंगा।” युवक ने तत्काल कहा । आखिर वह तो वेश्या है । उसके दिल में दया प्रेम कहाँ से आये हृदय की गहराई में ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलती। उसने कहा-मैं तुम्हें अपने प्यार के काबिल तभी समझू जब तुम अपनी माँ का सीना चीर कर उसका दिल मुझे ला दो। अन्यथा ये सब तेरी काल्पनिक और झूठी बातें हैं।
इतना सुनते ही वह हैवान खुशी से उछल पड़ा, शैतान बन गया। बोला यह कौन सी बड़ी बात है। मैं तो तेरे लिए सर्वस्व न्यौछावर कर सकता हूं। __सूर्य की किरणों की भांति द्रुत गति से वासना के रंग में रंगा सीधा बाजार गया। वहाँ से तेज धार का चाकू खरीद कर घर की तरफ चल पड़ा। माँ के प्रेम को भूल चुका था। वेश्या भी नारी और उसकी माँ भी। परन्तु एक का प्रेम अशुद्ध तो दूसरी का निर्मल गंगा के जल की भाँति शुद्ध । एक का शारीरिक ताप है तो दूसरी का मानसिक । वह वासनाजन्य होता है किन्तु यह भावना की उच्च भूमि से आधारित होता है। पर क्या हो ? उसकी बुद्धि नष्ट भ्रष्ट हो चुकी थी। कायिक ताप ऊष्णता के चरम-शिखर तक पहुंच गया था। रूप सुन्दरी के रूप के वशीभूत होकर माँ का अन्त करने के लिए तैयार हो गया। इसीलिए वानर-जाति ने आदमी पैदा करने बन्द
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