Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 80
________________ ६६ मांगा वही लाया। यह देखकर वह हैरान हो गयी । आवेश में आकर बोली-हे कामिन ! धन्य हो मैंने अनेक कामी देखे, पर तुझसा आशिक कुर्बान नहीं। पर हकीकत में तू हैवान है, इन्सान नहीं। नालायक हो...''चले जायो यहाँ से... जो अपनी माँ को प्यार न दे सका, वह मुझे क्या देगा? अपनी मां का जो न हो सका। वह दूसरों का क्या होगा? ___ "धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का"। रोता-पीटता घर की तरफ बढ़ चला । अपने कुकर्म पर पछतावा करने लगा पर अब क्या हो सकता था ? “अब पछताये क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत" । कपूत की करनी से सबक लीजिए। ____यह दृष्टान्त मैंने इसलिए दिया है कि “सेनेका" का विचार मेये मस्तिष्क में हथौड़े मार रहा है कि "अच्छे दृष्टान्त हमको अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं, एवं महान् आत्माओं का इतिहास हमें उदार विचार के लिए प्रोत्साहित करता है।" और "दृष्टान्त उपदेश से अधिक फलोत्पादक होता है"-डा० जान्सन (Example is more effieacious than precept.) उपर्युक्त कहानी में भी पुत्र ने माँ के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया पर फिर भी माँ का पुत्र के प्रति असीम वात्सल्य दृष्टिगोचर हुआ। हमें साहित्य के प्रांगण में भी इसी तरह से माँ के वात्सल्य का आस्वाद मिलता है। ___ कविवर सुमित्रानन्दन पंत ने नारी को मां के रूप में अतुल वात्सल्य की मूर्ति माना है। जीवन के सभी उद्देश्य उसी में केन्द्रित हैं । कविवर पंत माँ के नैसर्गिक सुख से वंचित रहे । अतः उन्होंने इस सुख की क्षति पूर्ति प्रकृति से की माँ मेरे जीवन की हार। तेरा उज्ज्वल हृदयहार हो अथ कणों का यह उपहार । श्री शांतिप्रिय द्विवेदी के शब्दों में, "इन विविध रूपों में मातृत्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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