Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 51
________________ हम प्रभु से प्रार्थना करें कि आगे हमें भी यह प्राकृति मिले । सर्वोपरि आकृति यही है।" 'नहि मानुषात्' श्रेष्ठतरं हि किञ्चित्, या 'बड़े भाग मानुष तन पावा' आदि ऋषिमुनियों ने कहा "क्योंकि यह सर्व-ज्येष्ठ है पर" ज्येष्ठता के साथ श्रेष्ठता का समन्वय नहीं तो हमारी ज्येष्ठता का कोई महत्व नहीं । अाजकल तो प्राकृति में प्रकृति पाएँ—यह बात तो योजनों दूर है। उल्टे विकृति ही विकृति आ रही है। अधिक क्या कहूँ। आप तो आप हैं। माँ के नाम पे, करते बड़े पाप हैं। विशेष क्या कहें बगल में छरे मुख में भगवान है। तंग आ गया मैं कारण यही है आप तो आप हैं । आप रामायण की किस पंक्ति के शब्द हैं ! ये तो राम जाने । पर शायद रावण की पंक्तियों में से आप कोई शब्द हो, अथवा राम वाली पंक्तियों में से। माँ ! माँ तो होती है साथ में सास भी। वैसे फिर सास तो सास होती है । जब सास होगी तभी पुत्रवती बहू होती है। उसका पुत्रवती होना ही पुत्र का सौभाग्यलक्षण है और पुत्र का होना ही अन्ततः सास-माँ का होना है। ___ समाज शास्त्र के जन्मदाता व सोशयालोजी के पितमह आगस्त काम्टे का कथन है कि सास-बहू की एक अनिवार्य आवश्यकता है। सास रहित बहू और माँ हीन पुत्र, अधिक दिन स्वयं का अस्तित्व न तो यह कायम रख सकती है और न ही वह । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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